अमर शहीद रघुनाथ महतो का इतिहास बयां करते हैं गड़े पत्थर
वे चुहाड़ विद्रोह के महानायक थे। क्रांति वीर रघुनाथ महतो व उनके कुछ सहयोगियों की वीरगाथा को कीता-लोटा में गड़े पत्थर याद कराते हैं।
झारखंड की धरती ने अनेक महान देशभक्तों को जन्म दिया जिन्होंने अंग्रेजों की गुलामी से देश को आजाद कराने के लिए हंसते-हंसते अपने प्राणों की आहूति दे दी। झारखंड के ऐसे शहीदों में एक नाम है अमर शहीद रघुनाथ महतो का। वे चुहाड़ विद्रोह के महानायक थे। क्रांति वीर रघुनाथ महतो व उनके कुछ सहयोगियों की वीरगाथा को कीता-लोटा में गड़े पत्थर याद कराते हैं।
1857 के सिपाही विद्रोह से काफी पहले पहले 1769 में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ चुहाड़ विद्रोह हुआ था। इसका उल्लेख इतिहासकार शमिक सेन, डॉ. वीरभारत तलवार व भारत का मुक्ति संग्राम के लेखक अयोध्या सिंह आदि ने किया है। संभवत: यह अंग्रेजों के खिलाफ प्रथम संगठित विद्रोह था। उस जमाने में ब्रिटिश राज के विरुद्व जो लोग विद्रोह करते थे उन्हें बदमाश, चुहाड़ आदि कहा जाता था। इसीलिए इस विद्रोह का नाम ''चुहाड़ विद्रोह'' पड़ा। उस जमाने में क्रांतिकारियों के बारे में चर्चा करना अपराध था।
बगैर कुछ लिखे गाड़े गए थे पत्थर
बगैर कुछ लिखे इन पत्थरों को गाड़ कर रखा गया था, ताकि इतिहास कभी न कभी सामने आए। भारत का मुक्ति संग्राम किताब के अनुसार महान क्रांतिकारी रघुनाथ महतो की सांगठनिक क्षमता व युद्धकला से अंग्रेज डरते थे। रघुनाथ महतो के साथ हथियारों से लैस डेढ़-दो सौ लोगों का लड़ाकु दस्ता हमेशा रहता था। इस कारण अंग्रजों की सेना भी उन्हें पकड़ने की हिम्मत नहीं करती थी। 1769 से 1778 के बीच रघुनाथ महतो के नेतृत्व में चुहाड़ विद्रोहियों ने ईस्ट इंडिया कंपनी के दर्जनों अफसरों व सैकड़ो फिरंगी सैनिकों को मार दिया था। इसी के बाद अंग्रेज सेनापति विलकिंग्सन ने उनके खिलाफ ठोस रणनीति बनानी शुरू कर दी। उस जमाने में विद्रोहियों की रात में सभा होती थी।
आसान नहीं था रघुनाथ महतो को पकड़ना
रघुनाथ महतो को पकड़ना उतना आसान नहीं था। फरवरी 1778 में विद्रोहियों ने दामोदर नदी पार कर झरिया के राजा के क्षेत्र मे चढ़ाई कर दी। रात को राजा के बैरक में शस्त्र लूटने के उद्देश्य से हमला किया गया। दामोदर नदी किनारे एक सभा की गई। अगली रणनीति के लिए विद्रोहियों को तैयार रहने को कहा गया। रघुनाथ महतो की सेना में करीब पाच हजार विद्रोही थे और वे तीर-धनुष, टागी, फरसा, तलवार, भाला आदि पारंपरिक हथियारो से लैस रहा करते थे। इन लोगों ने प्रस्ताव पारित किया कि जब तक अंग्रेज हमारी जमीन जमींदारों के हाथों सौंपते रहेंगे तथा राजस्व में वृद्वि करते रहेंगे तब तक हम किसी भी हालत में आंदोलन बंद नहीं करेंगे और हमारी जंग जारी रहेगी। गाव-गाव से काफी संख्या में अंग्रेजो के विरुद्व संघर्ष करने हेतु रघुनाथ महतो के समर्थन में कृषक कूद पड़े।
हमले की रणनीति बनाने के समय अंग्रेजों ने की घेराबंदी
पांच अपै्रल 1778 को रघुनाथ महतो विद्रोहियों के साथ राची जिला अर्न्तगत सिल्ली प्रखंड के किता-लोटा जंगल के पास बैठक कर रामगढ़ पुलिस छावनी में हमला करने हेतु रणनीति बना रहे थे। उस समय चारों तरफ से अंग्रेजों की सेना ने उन्हें घेरकर गोलियों की बौछार कर दी। रघुनाथ महतो समेत दर्जनों विद्रोही अंग्रेजों से लड़ते हुए शहीद हो गए। कीता गाव के चापाडीह़ निवासी कालीचरण महतो (65) ने जिस स्थान पर रघुनाथ महतो व उनके सहयोगी बुली महतो शहीद हुए, उसी स्थान पर एक बड़ा पत्थर रघुनाथ व साथ में एक छोटा पत्थर बुली महतो की स्मृति में गाड़े गये थे। आस-पास और छह क्रांतिकारी शहीद हुए, उन स्थानों पर छह पत्थर गाड़े गए। नदी पार लोटा गाव में चार क्रांतिकारी शहीद हुए, वहां चार पत्थर गाड़े गए। ये पत्थर आज भी उन वीरों की शहादत की याद दिलाते हैं।
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