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आपको सुकून की चाय और मूक बधिरों को रोज़गार देता रायपुर का ‘नुक्कड़ चाय कैफ़े’!
: छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में समाज को नई दिशा देना वाला नुक्कड़ कैफे छत्तीसगढ़ में सबसे लोकप्रिय है. यहां यूथ के साथ सीनियर सिटीजन का ठिकाना है. रोजाना बड़ी संख्या में लोग यहां किताबें पढ़ने व रंगभूमि में कलाकार अपनी प्रस्तुति देने आते हैं. यही नहीं ये खास इस लिए है क्योंकि यहां काम करने वाले सभी कर्मचारी समाज के नजरों से किनारे हुए लोग हैं. इनमें से कई स्टाफ बोल-सुन नहीं सकते हैं लेकिन नुक्कड़ में बिना कोई समस्या के काम कर लेते है.
यहाँ समय बिताने का मतलब सिर्फ चाय का लुत्फ़ उठाना ही नहीं है बल्कि उस से भी कुछ ज्यादा है । यहाँ पर गुजरने वाला समय आपको सांकेतिक भाषा सिखाएगा, किताबो के पन्नो में ख़ुद डूबाना सिखाएगा, कुछ कवितायें गुनगुनाना सिखाएगा, अपने जैसे दूसरे लोगों से आपको मिलवायेगा और नए लोगों के साथ दोस्ती करवाएगा !
प्रियंक पटेल द्वारा 2013 में शुरू किये गये इस कैफ़े में केवल ऐसे लोगों को नौकरी पर रखा जाता है जो बोलने और सुनने में असक्षम है। इसके पीछे का इनका मकसद समाज के लिए एक नए तरीके से कुछ करना है।
यह कैफ़े, चाय और नाश्ते के साथ ही एक खुबसुरत माहौल देता है जहाँ आप सुकून के दो पल ज़रूर गुज़ारना चाहेंगे। यहाँ की टीम नए-नए विषयों पर वाद विवाद का कार्यक्रम करवाती है साथ ही ऐसे कई आयोजन भी करवाती है, जिससे यहाँ पर आये लोगों का समय यादगार बन जाए।
हर लोगों को नहीं मिलता रोजगार
दरअसल इस नुक्कड़ में सिर्फ उन लोगों को रोजगार मुहैया कराया जाता है. जो अपनी कमियों के कारण मुख्यधारा में जुड़ नहीं पाते हैं. दीनदयाल साहू सुन और बोल नहीं सकते लेकिन ग्राहकों की जरूरतों को आसानी से समझ कर पूरा कर देते हैं. इनके साथ छोटे कद के मनीष कुमार खूंटे हैं जो पिछले 3 साल से काम करते-करते साइन लैंग्वेज की भाषा आसानी से समझ लेते हैं और ग्राहकों के ऑर्डर लेते हैं. इसी तरह दो किन्नर समुदाय के स्टाफ हैं जो अब यहां काम करके बेहतर महसूस कर रहे हैं. इसके अलावा जिन ग्राहकों को साइन लैंग्वेज समझ नहीं आता है तो टेबल पर रखी पेन से अपना ऑर्डर लिखकर दे सकते हैं और अगर किसी स्टाफ को बुलाना होगा तो मोबाइल का फ्लैश लाइट भी जला सकते हैं.
आकर्षित करने के लिए बनाई गई है अलग-अलग चीजें
इंजीनियर प्रियंक पटेल ने दिल्ली की नौकरी छोड़कर 2013 में पहले नुक्कड़ की स्थापना की. कॉन्सेप्ट लोगों को रास आने लगी व धीरे-धीरे नुक्कड़ का विस्तार भी होने लगा. अब नुक्कड के 4 मालिक हो गए हैं. प्रियंक पटेल नुक्कड़ को अनोखा बनाने के लिए कैफे को छोटी-छोटी बारीकियों के साथ तैयार किया गया है. नुक्कड़ में जाते ही महान विचारकों की कविता देखने को मिलेगी. दीवारों पर नजर डालेंगे तो पूरे शहर को पेंटिंग देख आसानी से अनुभव किया जा सकता है. वहीं ये नुक्कड़ केवल चाय-नाश्ता के लिए लोकप्रिय नहीं है. यहां एकांत में पुस्तकालय भी बनाया गया है. जहां किताब पढ़ने के शौकीन किताब पढ़ सकते हैं. अगर किताब आदान-प्रदान करना चाहें तो इसके लिए भी ज्ञानदाता अभियान चलाया जा रहा है.
नुक्कड़ बस यहीं खत्म नहीं होता, इस छोटी सी जगह में आदिवासी संस्कृति को लोगों से जोड़ने के लिए खादी कपड़ों में गोदना आर्ट डिजाइन किया जाता है. वहीं नुक्कड़ के प्रथम फ्लोर में खाना बनाने के लिए रसोई है. बैठक व्यवस्था भी छत्तीसगढ़ी संस्कृति के अनुरूप किया गया है. इसके अलावा यहां रंगभूमि भी तैयार किया गया है. जहां लोक कलाकारों को मंच दिया गया है. अक्सर यहां लोक कलाकार अपनी प्रस्तुति देते हैं. एक कंप्यूटर लैब भी है जहां कोई भी कंप्यूटर से जुड़े काम यहां आकर कर सकता है. वहीं आपको बता दें कि रायपुर के नुक्कड़ में अब तक 200 से अधिक लोगों को रोजगार मिल चुका है.
प्रियंक कहते हैं, “ मैं नहीं चाहता था कि नुक्कड़ एक आम सी जगह हो जहाँ लोग आयें, चाय पिये और चले जाएँ । मैं चाहता था कि लोगों को यहाँ एक अनुभव हो, अपने आस पास के लोगों को वे जानें और नयी-नयी चीजें यहाँ से सीख के जाएँ।”
मिलती है 20 प्रकार की चाय
एक रिपोर्ट के अनुसार कैफे में 20 से अधिक तरह की चाय मिलती है. यहां किताबों और हस्तलिखित पत्रों का एक अनुकूलित सेटअप है. यह स्थान चाय के साथ बातचीत करने के लिए कुछ अलग-अलग प्रकार के आयोजन भी करता है, जिसमें चाय और बातचीत एक ओपन-माइक इवेंट और स्टोरी टेलिंग जैसे सेशन्स शामिल हैं. कैफे के स्टाफ सदस्यों के साथ आसान संचार के लिए मेन्यू को भी सांकेतिक भाषा में किया किया गया है
कैफे की खूबियां
इंजीनियर प्रियंक पटेल ने दिल्ली की नौकरी छोड़कर 2013 में पहले नुक्कड़ की स्थापना की. कॉन्सेप्ट लोगों को रास आने लगा और धीरे-धीरे नुक्कड़ का विस्तार होता गया. अब नुक्कड़ के 4 मालिक हो गए हैं. प्रियंक पटेल ने नुक्कड़ को अनोखा बनाने के लिए कैफे को छोटी-छोटी बारीकियों के साथ तैयार किया है. नुक्कड़ में जाते ही आपको महान विचारकों की कविता देखने को मिलेगी. दीवारों पर नजर डालेंगे तो पूरे शहर की पेंटिंग्स दिखेंगी. वहीं ये नुक्कड़ केवल चाय-नाश्ता के लिए लोकप्रिय नहीं है. यहां एकांत में पुस्तकालय भी बनाया गया है. जहां किताब पढ़ने के शौकीन किताब पढ़ने के शौकीन किताब पढ़ सकते हैं
आइये देखें वे इस मकसद को कैसे पूरा कर रहे हैं :
- डिजिटल डिटोक्स – यह कैफ़े ऐसे लोगों को छूट देते हैं जो यहाँ आने पर अपना फ़ोन जमा कर देते हैं। प्रियंक कहते है, “हम नहीं चाहते कि हमारे ग्राहक यहाँ आ कर अपने फ़ोन से चिपके रहें, या उन लोगों से चैटिंग करते रहे जो असल में यहाँ मौजूद नहीं है। हम चाहते हैं कि वे यहाँ आ कर अच्छा समय गुज़ारे, मस्ती करें, किताबें पढ़ें, नए लोगों से मिलें.. ।”
- ज्ञान दान – लोग यहाँ आ कर अपनी किताब जमा कर सकतें हैं और बदले में यहाँ की कोई किताब तीन दिनों के लिए अपने साथ ले जा सकते हैं ।
- टी एंड टोन्स – यहाँ ऐसे आयोजन किये जाते हैं, जहाँ कोई भी ग्राहक माइक पर अपने पसंद की कविता सुना सकता है।
- बिल बाय दिल – यह कैफ़े अपनी वर्षगाँठ ‘बिल-मुक्त दिवस’ के रूप में मनाता है। ग्राहकों को बिल की जगह एक खाली लिफाफा पकड़ा दिया जाता है, जिसमे वे अपनी ख़ुशी से पैसे डाल देते हैं।
- सुपर माँम सेलिब्रेशन – अपनी माँ को साथ लाने पर यह कैफ़े उनकी पसंद की कोई भी एक डिश बिलकुल मुफ्त देता है।
फिलहाल रायपुर में नुक्कड़ के दो ब्रांच है जिसमे कुल 8 कर्मचारी ऐसे हैं जो सुन और बोल नहीं सकते।
पेशे से इंजिनियर, 31 वर्षीय प्रियंक, 5 साल तक एक कंपनी में काम कर चुके हैं। इसके बाद इन्होने एक फ़ेलोशिप प्रोग्राम में हिस्सा लिया और तभी यह भारत के ग्रामीण क्षेत्र के संपर्क में आये। उड़ीसा, महाराष्ट्र और गुजरात के गाँव में काम करने के बाद उन्हें यह महसूस हुआ कि भारत की युवा पीढ़ी सामाज के लिए ज्यादा कुछ नहीं कर रही । वह स्वयं सेंवी संस्थाओं से जुड़े रह कर एक ऐसी जगह बनाना चाहते थे जहाँ लोग, खासकर युवा पीढ़ी आये, एक दूसरे से मिले, विचारों का आदान प्रदान हो, और समाज के लिए भी कुछ नया करने की सोचें ।
..और यहीं से जन्म हुआ ‘नुक्कड़’ का।
ये कहते हैं, “ मैं हमेशा से चाहता था कि अभी की युवा पीढ़ी को एक ऐसा मंच दूं जो समाज से जुड़ने का एक अवसर हो। नुक्कड़ के पीछे मेरा एक मकसद ऐसे लोगों को रोज़गार देना है, जो सुनने और बोलने में असक्षम हैं। मेरी यह इच्छा भी थी कि एक ऐसी जगह बनाऊं जहाँ स्वयंसेवी संस्थाएं, कलात्मक और युवा लोग सामने आयें, आपस में मिले और काम करें।”
प्रियंक बताते हैं , “ हमारे ग्राहकों ने यहाँ के स्टाफ से सांकेतिक भाषा में बात करना शुरू कर दिया है। मुझे लगता है कि कोई व्यक्ति अगर यह भाषा सीखता है तो वह आगे चल कर सहायक ही होगी। हमारे स्टाफ का भी आत्मविश्वास बहुत बढ़ा है। अब वे अपने परिवार के ऊपर बोझ नहीं है और उनके परिवार को भी उनपर गर्व है।”
नुक्कड़ के संस्थापक की पहल पर देशभर में चर्चा हो रही है
प्रियंक पटेल को हाल ही में दिव्यांगजन सशक्तिकरण के क्षेत्र में बेहतर काम करने के लिए राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित किया हुआ है. 3 दिसंबर के विश्व दिव्यांगजन दिवस के अवसर पर केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने नुक्कड़ कैफे को दिव्यांगजन और ट्रांसजेंडर को मुख्यधारा में जोड़ने के लिए सम्मानित किया है.
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