बांदा-चित्रकूट में मौत के 12 वर्ष बाद भी सत्ता संघर्ष में लोगों के जेहन में जिंदा है 'ददुआ'
देवकली गांव का शिवकुमार पटेल उर्फ ददुआ ग्रामीणों के लिए दस्यु कम और बागी अधिक है। सत्ता संघर्ष में इस नाम की गूंज इतनी है कि लग रहा है ददुआ अभी भी जिंदा है।
चित्रकूट (उप्र)। देवकली गांव का शिवकुमार पटेल उर्फ ददुआ ग्रामीणों के लिए दस्यु कम और बागी अधिक है। सत्ता संघर्ष में इस नाम की गूंज इतनी है कि लग रहा है ददुआ अभी भी जिंदा है। दल बदल कर एक दूसरे के सामने आए सत्ता संघर्ष के तीनों महारथी कभी न कभी ददुआ से राजनीतिक संरक्षण प्राप्त करते रहे हैं और आज भी एक दूसरे की सियासी पारी को ददुआ की ही देन बता रहे हैं। ददुआ के भाई कांग्रेस प्रत्याशी बाल कुमार पटेल की तरफ से उठाए गए इस मुद्दे से बुंदेलों की पठारी धरती पर सियासी गरमाहट बढ़ गई है। कांग्रेस प्रत्याशी के प्रचार में गुजरात से पहुंचे हार्दिक पटेल का ददुआ को गरीबों का नेता बताने के बाद यह पारा और चढ़ा है।
फतेहपुर के धाता ब्लाक नरसिंहपुर कबरहा में शिवकुमार पटेल उर्फ ददुआ का बनवाया हुआ हनुमान मंदिर है। यहां पत्नी संग ददुआ और माता-पिता की मूर्ति लगी है। ददुआ और हनुमान जी की मूर्ति एक दूसरे की ओर देखते हुए है। मूर्ति इस तरह लगवाने के पीछे कहा जाता है कि ददुआ चाहता था, हनुमान जी की नजर हमेशा उस पर रहे। सियासत के साथ भी ऐसा ही है। इसलिए, क्योंकि बांदा-चित्रकूट लोकसभा सीट पर मौजूदा सत्ता संघर्ष मृत्यु के 12 साल बाद भी ददुआ की मौजूदगी दर्ज करा रहा है।
ददुआ के नाम से चलती है यहां की राजनीति
देवांगना घाटी से मानिकपुर के मारकुंडी के ददरी गांव तक का इलाका पाठा क्षेत्र कहलाता है। यहां जंगल हैं या फिर पहाड़। इन्हीं की तलहटी में गांव बसे हैं। जिले की 335 ग्राम पंचायतों में 110 इसी क्षेत्र में हैं। इन ग्राम पंचायतों के अलावा बांदा की नरैनी विधानसभा का एक बड़ा भी हिस्सा दस्यु प्रभावित है और भौगोलिक संरचना में तकरीबन समान होने के कारण पाठा का हिस्सा ही माना जाता है। यानी लोकसभा क्षेत्र का करीब 40 फीसद हिस्सा जंगल, पहाड़ और दुस्य प्रभावित है और इसी के दम पर यहां सियासत में परिणाम तय होते रहे हैं। ग्रामीण इसे कहते भी हैं। पाठा क्षेत्र के ग्राम खंडेहा के पूर्व प्रधान रमाशंकर पटेल बोले, यहां की राजनीति ददुआ से ही चलती रही है। अब लोग बाल कुमार को डकैत का भाई बोल रहे हैं। दूसरे भी तो ददुआ के संरक्षण में रहे हैं। अब ददुआ नहीं हैं, तो भी सब उन्हीं के सहारे राजनीति कर रहे हैं।
कमजोरों की मदद करता था ददुआ
बहरहाल, दस्यु प्रभावित इस इलाके में विकास की धारा कभी नहीं बह पाई। कानपुर के केशवपुरम में एक मकान के लिए ईंट- गारे का काम कर रहे बांदा के गरदही गांव के रामकुमार कहते हैं, मै का कहौं, पेट भरै का खातिर खेत छोड़ कै मजूरी करै का परति है। ददुआ कमजोरन का मदद करत रहा है, लेकिन इलाका डाकुन का क्षेत्र बन हा है। येहि के कारण विकास नहीं भा। मोदी तो घर दीन हइस लेकिन खेतिउ खातिर कुछ करौ चहि...। बुंदेलखंड के इस हिस्से के लोगों के लिए ददुआ मुद्दा हैं लेकिन विकास को भी वह पीछे नहीं छोड़ रहे हैं। कई लोग यह मानते हैं, ददुआ कमजोरों की मदद करता रहा है, इसीलिए उसके प्रत्याशी उसके नाम सहारा ले रहे हैं। इधर, पलायन और सूखे खेत से जूझ रही जनता के लिए मुद्दे अहम हो गए हैं।
भाई और बेटा हैं मैदान में
पन्ना। बांदा-चित्रकूट सीट से जहां ददुआ के भाई बाल कुमार पटेल कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं, वहीं मप्र की खजुराहो लोकसभा सीट से ददुआ के बेटे वीर सिंह पटेल मैदान में हैं। खजुराहो सीट पर भाजपा, कांग्रेस व गठबंधन सहित कुल 17 प्रत्याशी चुनावी मैदान में हैं. लेकिन इन प्रत्याशियों में चर्चित नाम वीर सिंह पटेल का है।
ददुआ के उसी प्रभाव व पटेल समाज में गहरी पैठ का लाभ उठाने के लिए सपा-बसपा गठबंधन ने वीर सिंह को मैदान में उतारा है। दस्यु सरगना ददुआ का चित्रकूट, मानिकपुर व पाठा क्षेत्र गढ़ रहा है। पन्ना जिले की सीमा इस इलाके से लगी हुई है। जाहिर है कि ददुआ का यहां भी आनाजाना लगा रहता था।