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उत्तर भारत में कमजोर मानसून, सूखे का किसानों पर पड़ा है कितना अधिक प्रभाव?
भारत में आज भी खेती का एक बड़ा हिस्सा मानसून पर निर्भर करता है और धान की फसल तो अत्यधिक सिंचाई के बीच उगाई जाती है. इसलिए बारिश ना होने कि स्थिति में हमेशा से इस पार नकरात्मक प्रभाव पड़ता रहा है. 29 जुलाई 2022 को कृषि मंत्रालय की तरफ से जारी आंकड़ों से पता चलता है कि सूखे की स्थिति के बीच देश में धान की रोपाई बुरी तरह प्रभावित हुई है.
हमारी आर्थिक व्यवस्था का किसान इकलौता हिस्सा है जो सबसे अधिक चुनौतियों का सामना करता है. वह किसी एक संकट से निकल ही रहा होता है कि दूसरा संकट उसके सामने आ चुका होता है. अभी पिछले वर्ष खाद की किल्लत के बीच लाइनों में लगा किसान इस साल सूखे की गंभीर समस्या में फंस चुका है. कोविड संकट कितना भी भयावह रहा लेकिन हमने देखा था कि किसानों ने तब भी देश को अनाज उपलब्ध कराया था. अर्थव्यवस्था में कृषि ही एकमात्र हिस्सा था जिसकी वृद्धि दर पॉजिटिव रही थी. परंतु आज यह क्षेत्र बेहद बेबस स्थिति में खड़ा है. पूरे उत्तर भारत में सूखे की गंभीर समस्या ने किसानों के सामने भविष्य की तमाम आशंकाओं को उत्पन्न कर दिया है. पिछले 2 वर्षों से अच्छी मानसून के बीच बेहतर स्थिति में खेती कर रहा किसान, इस वर्ष कमजोर मानसून का शिकार हो चुका है.
क्या कहते हैं मौसम विभाग के आंकड़े?
मौसम विभाग के ताजा आंकड़ों का अध्ययन करें तो देश के 196 जिलों में सूखे की गंभीर समस्या उत्पन्न हो चुकी है. इनमें से 65 जिले उत्तर प्रदेश और 33 जिले बिहार के हैं. ध्यान रहे कि ये दोनों ही राज्य धान की फसल में अग्रणी माने जाते हैं. बिहार में तो काफी अच्छी मात्रा में धान की खेती की जाती है. इसलिए इन राज्यों में यह स्थिति राष्ट्रीय खाद्यान संकट की तरफ इशारा कर रही है. ऐसा इसलिए क्योंकि इन राज्यों के साथ ही देश के अन्य हिस्सों में भी सूखे की स्थिति गंभीर होती जा रही है. मौसम विभाग के आंकड़ों से पता चलता है कि देश के कुल 756 जिलों में से केवल 63 जिले ऐसे हैं जहां अच्छी बारिश हुई है. बाकी अन्य 660 जिलों में अलग-अलग स्तर पर सूखे की स्थिति बनी हुई है. यह स्थिति अब इसलिए भयावह है क्योंकि मानसून की शुरुआत को 2 महीने बीत चुके हैं.
धान की रोपाई में कितनी गिरावट आई है?
भारत में आज भी खेती का एक बड़ा हिस्सा मानसून पर निर्भर करता है और धान की फसल तो अत्यधिक सिंचाई के बीच उगाई जाती है. इसलिए बारिश ना होने कि स्थिति में हमेशा से इस पार नकरात्मक प्रभाव पड़ता रहा है. 29 जुलाई 2022 को कृषि मंत्रालय की तरफ से जारी आंकड़ों से पता चलता है कि सूखे की स्थिति के बीच देश में धान की रोपाई बुरी तरह प्रभावित हुई है. मानसून की कमी की वजह से पिछले साल की तुलना में इसमें 13 फीसदी की कमी आई है.
किसानों का क्या कहना है?
उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले के अंतर्गत ग्राम सभा गोरी के किसान मुकेश सिंह का कहना है कि वह सामान्यतः कुल 5 बीघे की रोपाई करते रहे हैं लेकिन वर्तमान समय में बारिश के अभाव की वजह से बस 2.5 बीघे की ही खेती की है. वहीं इसी जिले के सलेमपुर कस्बे के किसान संजय सिंह कहते हैं कि अगर हम अपने पूरे 6 बीघे में धान की खेती कर दें तो हमारी कुल लागत में से ₹50,000 तो सिर्फ सिंचाई के लिए लगानी पड़ जाएगी. बिहार के मधुबनी जिले के गांव लक्ष्मीपुर के किसान उमापति मिश्रा का कहना है कि हम पंप के जरिए सिंचाई कर अच्छी फसल कभी नहीं उगा सकते. इसके लिए बारिश के पानी का फसलों में रिसना जरूरी है. इसलिए हमने भी इस बार अच्छी पैदावार की उम्मीद छोड़ रखी है. इस बार परिवार के खाने की उपज हो जाए वही पर्याप्त है.
एक बीघे खेत में धान उगाने की क्या लागत है?
किसानों की बेबस स्थिति को समझने के लिए हमें मानक के रूप में एक बीघे खेत में धान की उपज में आने वाली लागत और फसल की बिक्री से प्राप्त आय के अर्थशास्त्र को समझना जरूरी है. नीतियों पर शोध करने वाली संस्था "फाइनेंस एंड इकोनॉमिक्स थिंक काउंसिल" ने तमाम किसानों और विशेषज्ञों से बातचीत करने के बाद 1 बीघे धान की रोपाई और कटाई का अनुमानित लागत तय किया है. इस संस्था के हिसाब से एक बीघे धान की खेती में एक बार सिंचाई के लिए तकरीबन 14 लीटर डीजल की जरूरत पड़ती है. वर्तमान में उत्तर प्रदेश में डीजल प्रति लीटर 89.76 रुपए बिक रहा है. ऐसी स्थिति में एक बार सिंचाई के लिए किसान को 1246 रुपए खर्च करने पड़ेंगे. किसानों का मानना है कि इस सूखे की स्थिति में न्यूनतम 10 बार सिंचाई करने की जरूरत पड़ेगी. ऐसी स्थिति में सबसे ज्यादा लागत सिंचाई में आनी है. इसलिए अगर हमने दस बार सिंचाई की तो कुल 12460 रुपए का खर्च तो सिर्फ यहीं हो जाएगा. फिर आप खेत की जुताई का ₹1500 रुपए, खाद का ₹1500, बीज का ₹2000, रोपाई का ₹1000, फसल कटाई का ₹1000 जोड़ लीजिए. यह कुल लागत ₹19,460 रूपये की बनती है. अब एक बीघे खेत में अगर बहुत अच्छी फसल हो तो औसतन 12 से 14 क्विंटल की कटाई होती है, लेकिन सूखे की स्थिति में किसान अधिकतम 8 क्विंटल कटाई ही कर पाएगा. अगर आप बहुत आशावादी होते हैं तो 10 क्विंटल की पैदावार मान लीजिए. अब एमएसपी के आधार पर किसान के कुल फसल की बिक्री मूल्य का आकलन करते हैं. हाल ही में केंद्र सरकार ने धान की एमएसपी में ₹100 का इजाफा करते हुए इसे प्रति क्विंटल ₹2,040 कर दिया है. अब दस क्विंटल पर गणना करें तो किसान को कुल ₹20,400 प्राप्त होंगे जो कि उसकी लागत से ₹940 ही ज्यादा है. अब इस ₹940 से किसान को अपने परिवार का दैनिक खर्च, दवा, बच्चों की पढ़ाई तथा अन्य जरूरी काम करने है. अब आप इस एक आकलन से किसान की बदहाल स्थिति समझ सकते हैं.
भारत में एक किसान की कितनी कमाई है?
भारत का आर्थिक सर्वेक्षण-2016 कहता है कि देश के 17 राज्यों के किसानों की औसत सालाना आय ₹20,000 है. यानी कि एक किसान औसत ₹55 की कमाई प्रति दिन करता है जबकि उत्तर प्रदेश में एक मनरेगा मजदूर की भी प्रति दिन न्यूनतम मजदूरी ₹213 तय की गई है.
ऊपर से बढ़ती महंगाई ने किसान के बजट को और बिगाड़ दिया है. बीते जून महीने में खाद्य पदार्थों की महंगाई दर 7.75 फ़ीसदी तो वहीं उपभोक्ता महंगाई दर 7.01 फीसदी रही है. इसके ठीक उलट सन 2021-22 के वित्तीय वर्ष में कृषि वृद्धि दर महज 3.9 फीसदी रही है. ऐसी स्थिति में जहां वर्ष 2022 किसानों की आय दोगुनी करने का था तब कृषि वृद्धि दर की तुलना ने महंगाई दोगुनी हो चुकी है.
सरकार को क्या करना चाहिए?
ऐसी स्थिति में सरकारी नीतियों का सही इस्तेमाल ही एक बेहतर निवारण दिखाई देता है. प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना वर्तमान समय में किसानों के लिए संजीवनी का काम कर सकती है. सरकार को चाहिए कि सूखे की समस्या को तत्काल प्रभाव से प्राकृतिक आपदा घोषित कर फसल बीमा योजना के जरिए नुकसान की भरपाई की जाए. साथ ही 660 जिलों में सूखे की स्थिति राष्ट्रीय आपदा के रूप में देखी जानी चाहिए और एक विशेष राहत पैकेज का ऐलान सरकार को करना चाहिए. तत्काल राहत के लिए सरकार प्रधानमंत्री कृषि सम्मान योजना की राशि को भी ₹6000 से बढ़ाकर ₹10000 रूपये कर सकती है.
(लेखक फाइनेंस एंड इकोनॉमिक्स थिंक काउंसिल के संस्थापक एवं अध्यक्ष हैं. वह यूपी के अमेठी में स्थित राजीव गांधी पेट्रोलियम प्रौद्योगिकी संस्थान में शोधार्थी भी हैं. ये लेखक के निजी विचार हैं.)