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कभी खेतों में 5 रुपये की मजदूरी करने वाली आज IT की दुनिया में दिखा रही हैं 'ज्योति', करोड़ों की हैं मालकिन

तेलंगाना के वारंगल इलाके के छोटे से गांव की रहने वाली ज्योति का बचपन गरीबी के चलते गुजरा अनाथालय में...

16 वर्ष की उम्र में विवाह और 17 की उम्र में माँ बनने के बाद परिवार पालने के लिये खेतों में करनी पड़ी मजदूरी...

सामने आई तमाम बाधाओं को पार पाकर पढ़ाई की और रात्रि विद्यालय में अध्यापन का काम किया प्रारंभ...

एक एनआरआई रिश्तेदार की सहायता से अमरीका गईं और अपनी काबलियत से 15 मिलियन डाॅलर की आईटी कंपनीकी साॅफ्टवेयर साॅल्यूशंसकी सीईओ हैं...

उस रात अनाथालय में रहने वाली उस लड़की ने तमाम नियमों को तोड़ने का फैसला किया और अपने कुछ मित्रों के साथ आधी रात के बाद ही वापस अपने अनाथालय लौटी, जहां वह और उसके ये मित्र रहते थे। वह देवों के देव महादेव के पर्व शिवरात्री की रात थी और मान्यता है कि उस रात ब्रहमांड के तमाम ग्रह भी उनके प्रभावशाली नृत्य का साक्षी बनने के लिये एक साथ जाते हैं। उस रात गांव में स्थित भगवान शिव के मंदिर में दर्शन करने के बाद इन्होंने वास्तव में ऐसा कुछ करने की ठानी जिसके लिये काफी हिम्मत की जरूरत थी और सब मिलकर उस समय की एक धमाकेदार फिल्म देखने गए जो एक प्रेम कहानी पर आधारित थी।

हालांकि अनिला ज्योति रेड्डी उस रात और तेलंगाना के वारंगल इलाके के उस गुमनाम से गांव को पीछे छोड़कर काफी लंबा सफर तय कर चुकी है लेकिन बीते समय की यादें उनके मानस पटल पर कुछ इस तरह से छपी हुई हैं जैसे वे कल ही की बात हों। वे बताती हैं,

‘‘उस रात जब हम काफी देर से वापस लौटे तो वार्डन ने हमारी बहुत अच्छे से खबर ली और हमें काफी मार पड़ी। लेकिन उस वक्त मैं उस फिल्म की गहराई में इस कदर खोई हुई थी कि मैंने उन सब चीजों पर अधिक ध्यान ही नहीं दिया। मुझे लगा कि प्यार के लिये मुझे भी शादी कर लेनी चाहिये।’’

लेकिन ज्योति की किस्मत में शायद कुछ और ही लिखा था और इस घटना के ठीक एक वर्ष के बाद ही मात्र 16 वर्ष की उम्र में उनका विवाह अपने से 10 वर्ष बड़े एक व्यक्ति के साथ कर दिया गया। इस बेमेल विवाह के परिणामस्वरूप बेहतर जीवन को लेकर पाले गए उनके सभी सपने चूर-चूर हो गए क्योंकि जिस व्यक्ति से उनका विवाह हुआ था वह एक किसान होने के अलावा बहुत ही कम पढ़ा-लिखा था। परिणतिस्वरूप उन्हें तेलंगाना के तपते हुए सूरज के नीचे धान के खेतों में एक दैनिक मजदूर के रूप में काम करना प्रारंभ करना पड़ा और दिनभर की कड़ी मेहनत के बाद ज्योति के हाथ आते थे सिर्फ पाँच रुपये। वर्ष 1985 से 1990 के पांच वर्षों तक ज्योति का जीवन ऐसे ही चलता रहा।

वर्तमान में अमरीका में रह रही ज्योति प्रतिवर्ष इन दिनों हैदराबाद आती हैं और फोन पर हुए वार्तालाप में वे बताती हैं, ‘‘मात्र 17 वर्ष की उम्र में मैंने मातृत्व का सुख पा लिया था! मुझे सुबह-सवेरे घर के सभी दैनिक कामकाज निबटाकर सीधे खेतों का रुख करना पड़ता था और शाम को घर लौटते ही मुझे रात के खाने की तैयारियों में जुटना पड़ता। उस समय हमारे पास स्टोव तक नहीं होता था इसलिये मुझे लकड़ी के चूल्हे पर आग जलाकर खाना पकाना पड़ता था।’’

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वर्तमान में ज्योति अमरीका, फीनिक्स, एरीज़ोना में स्थित 15 मिलियन डाॅलर की आईटी कंपनीकी साॅफ्टवेयर साॅल्यूशंसकी सीईओ हैं। उनकी सफलता की कहानी किसी उपान्यासकार द्वारा लिखी गई एक ऐसी कथा लगती है जिसमें नायिका को पूरी कहानी में लगातार कष्टों से भरा जीवन जीवन जीने के लिये मजबूर होना पड़ता है और आखिर में वह तमाम परेशानियों से पार पाकर एक विजेता के रूप में सामने आती है। इसके अलावा ज्योति ने अपना भाग्य संवारने और किस्मत बदलने में एक महती भूमिका निभाई है। अपने लिये पहले से तय की हुई जिंदगी को जीने से इंकार कर उन्होंने सामने आई तमाम बाधाओं को बखूबी पार किया और एक विजेता के रूप में सामने आईं।

वे कहती हैं कि वे गरीब घर में पैदा हुई थीं और फिर उनका विवाह भी एक बेहद गरीब परिवार में कर दिया गया और उस दौरान पेट भरने के लिये दाल से भरे 4 डिब्बे और चावल उनके लिये सपने जैसे होते थे। ‘‘मैं अपने बच्चों का पेट भरने के लिये पर्याप्त खाने के बारे में सोचती रहती थी। मैं अपने बच्चों को भी वही जीवन नहीं देना चाहती थी जो मैं जी रही थी।’’ 16 वर्ष की उम्र में विवाह होने के बाद ज्योति ने मात्र 17 की उम्र में एक बेटी को जन्म दिया और इसके एक वर्ष के भीतर ही वे एक और बेटी की माँ बनी। ‘‘मात्र 18 वर्ष की उम्र में मैं 2 लड़कियों की माँ बन चुकी थी। हमारे पास कभी भी इतने पैसे नहीं होते थे कि हम उनके लिये दवाईयां खरीद सकें या फिर उन्हें उनके पसंदीदा खिलौने खरीदकर दे सकें।’’ जब इन बच्चियो को स्कूल भेजने का समय आया तो उन्होंने अंग्रेजी माध्यम के स्थान पर तेलगू माध्यम का चुनाव किया क्योंकि उसकी फीस सिर्फ 25 रुपये प्रतिमाह थी जो अंग्रेजी माध्यम की आधी थी। ‘‘मेरे पास अपनी दोनों बेटियों को पढ़ाने के लिये प्रतिमाह सिर्फ 50 रुपये होते थे इसीलिये मैंने उनके लिये तेलुगू माध्यम का चुनाव किया।’’

ज्योति के तीन और भाई-बहन हैं और गरीबी के चलते उनके पिता ने उन्हें उनकी एक बहन के साथ यह कहते हुए एक अनाथालय में भर्ती करवा दिया कि इन बच्चियों की माँ की मौत हो चुकी है। ‘‘मैं पांच वर्षों तक अनाथालय में रही और वहां का जीवन वास्तव में बहुत कठिन था। हालांकि मेरी बहन खुद को उस माहौल में ढाल नहीं पाई और हमारे पिता को उसे वापस ले जाना पड़ा।’’ लेकिन ज्योति डटी रहीं और माँ की याद और आवश्यकता के बावजूद उन्होंने खुद को अनाथालय के उस माहौल में ढाल लिया।

अनाथालय में बिताए गए दिनों को याद करते हुए ज्योति कहती हैं, ‘‘मुझे याद है कि प्रतिवर्ष एक अमीर व्यक्ति अनाथालय में मिठाई और कंबल बांटने आता था। मैं उस समय काफी कमजोर थी और कल्पना करती थी कि एक दिन मैं भी बहुत अमीर बनूंगी और तब मैं एक सूटकेस में 10 नई साड़ियां रखकर चलूंगी।’’

प्रतिवर्ष 29 अगस्त को भारत वापस आने का कारण साफ करते हुए ज्योति बताती हैं कि इस दिन उनका जन्मदिन होता है और यह दिन वे वारंगल के विभिन्न अनाथालयों में रह रहे बच्चों के साथ मनाती हैं। इसके अलावा वे मानसिक रूप से विकलांग बच्चो के लिये भी एक संस्थान का संचालन करती हैं जहां 220 बच्चे रहते हैं।

ज्योति कहती हैं,

‘‘भारत की कुल आबादी में 2 प्रतिशत अनाथ हैं जिनकी अपनी कोई पहचान नहीं है। किसी को इनकी चिंता नहीं है और वे दूसरों के लिये अवांछित हैं। अनाथालयों में काम करने वाले लोग सिर्फ पैसे के लिये काम कर रहे हैं और उन्हें इन अनाथों की देखभाल और उन्हे प्यार करने से कोई सरोकार नहीं है।’’

ज्योति बीते कई वर्षों से अनाथ बच्चों के पुनरुद्धार और पुनर्वास के काम में जुटी हुई हैं और इसी क्रम में इन बच्चों की दशा को सुधारने के लिये सत्तासीन नेताओं और मंत्रियों से मुलाकात करती रहती हैं। उनकी मुख्य चिंता यह है कि राज्य सरकार ने विभिन्न रिमांड होम में रहने वाले दसवी तक के लड़कों का डाटा तो जारी कर दिया है लेकिन अनाथ लड़कियों को लेकर कहीं भी कोई केंद्रीयकृत जानकारी उपलब्ध नहीं है। ‘‘आखिरकार अनाथ लड़कियां कहां हैं? वे गायब क्यों हैं? वे पूछती हैं और फिर खुद ही अपने सवालों का जवाब देती हैं। ‘‘क्योंकि उनकी तस्करी की जाती है और उन्हें जबरदस्ती वेश्यावृत्ति में धकेला जाता है। मैंने हैदराबाद के एक ऐसे ही अनाथालय का दौरा किया था और वहां मुझे दसवीं में पढ़ने वाली 6 ऐसी बच्चियां मिलीं जो माँ बन चुकी थीं। एक ही अनाथालय में ये अनाथ माएं अपने अनाथ बच्चों के साथ रह रही हैं।’’

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वर्तमान में जब ज्योति कुछ कर पाने की स्थिति में हैं तो वे सामने आने वाले प्रत्येक मंच से अपनी चिंताओं को दुनिया के सामने लाती हैं और उनकी कोशिश रहती है कि इन अनाथ बच्चों की दर्दशा अनसुनी रह जाए। लेकिन एक समय ऐसा भी था जब उन्हें अपने पति और सुसराल वालों के अन्याय को मूकदर्शक बनकर देखना पड़ा था। वह एक चुनौतीपूर्ण दौर था जब खाने वाले कई थे और आय के बराबर थी। ‘‘उस समय मेरी सबसे बड़ी चिंता मेरे बच्चे थे और मेरा जीवन कई तरह के प्रतिबंधों से घिरा हुआ था। मैं किसी बाहरी पुरुष से बात नहीं कर सकती थी और खेतों पर काम करने के अलावा कहीं और -जा तक नहीं सकती थी।’’

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मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी के साथ ज्योति

लेकिन जैसे पर पुरानी कहावत हैं, जहां चाह वहां राह। ज्योति ने मौका मिलते ही अवसर का लाभ उठाया और एक रात्रि स्कूल में दूसरे मजदूरों को पढ़ाने का काम प्रारंभ कर दिया और इस तरह से वे एक मजदूर से सरकारी अध्यापक बन गईं। ‘‘मैं उन्हें मूल बातें जानने के लिये प्रेरित करती और यही मेरा मुख्य काम था। जल्द ही मेरी पदोन्नति हो गई और मैं वारंगल के प्रत्येक गांव में महिलाओं और युवाओं को कपड़े सिलने सिखाने के लिये प्रशिक्षित करने के लिये जाने लगी।’’ और अब वे प्रतिमाह 120 रुपये कमा रही थीं। ‘‘वह रकम मेरे लिये एक लाख रुपये मिलने के बराबर थी। अब मैं अपने बच्चों की दवाइयों पर पैसा खर्च कर सकती थी। यह मेरे लिये बहुत सारा पैसा था।’’

समय के साथ ज्योति के सपनों की उड़ान फैलती जा रही थी। उन्होंने अंबेडकर मुक्त विश्वविद्यालय से से एक व्यवसासिक पाठ्यक्रम पूरा किया और अंग्रेजी में एमए करने के लिये वारंगल के काकतिया विश्वविद्यालय में नामांकन करवा लिया। लेकिन अमरीका में रहने वाली एक रिश्तेदार ने उनकी कल्पनाओं को नये पंख दिये और उन्हें लगा कि गरीबी के भंवर से पार पाने के लिये उनका अमरीका जाना बेहद जरूरी हैै।

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प्रेरित करने वाली अपनी उस एनआरआई परिचित के बारे में बात करते हुए ज्योति कहती हैं, ‘‘उसका अपना एक स्टाइल था और वह मेरीअध्यापक छविसे बिल्कुल अलग थी। मैंने कभी अपने बाल खुले नहीं छोड़े थे, धूप के चश्मे नहीं पहने थे या कार नहीं चलाई थी। मैंने उससे पूछा कि क्या मैं अमरीका सकती हूँ।’’

उनकी रिश्तेदार ने उनसे कहा, ‘‘आपके जैसी महत्वाकांक्षी महिला बड़ी आसानी से अमरीका में स्वयं को व्यवस्थित कर सकती है।’’ ज्योति ने बिना एक भी क्षण गंवाए कंप्यूटर साॅफ्टवेयर कक्षाओं में नामांकन करवा लिया। उन्हें प्रतिदिन हैदराबाद का सफर करना पड़ता क्योंकि उनके पति को उनके घर से बारह रहने के विचार पर आपत्ति थी। वे अमरीका जाने के लिये दृढ़ थीं और उनके लिये अपने पति को राजी करना काफी मुश्किल था। ‘‘मैं अमरीका जाने के लिये वास्तव में बहुत उतावली थी क्योंकि मुझे पता था कि अपने बच्चों को एक बेहतर जीवन देने के लिये मेरे पास यही एक रास्ता है।’’

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अपने पति और दोनों बेटियों के साथ ज्योति

उन्होंने अमरीका का वीज़ा पाने के लिये अपने मित्रों और रिश्तेदारों की सहायता ली। ‘‘मैंने अपनी पहुंच में आने वाले प्रत्येक संसाधन का इस्तेमाल किया और मैंने अध्यापन करते समय भी समय व्यर्थ नहीं किया। मैंने दूसरे अध्यापकों के साथ मिलकर एक चिट फंड का प्रारंभ किया। वर्ष 1994-95 में मेरा वेतन 5 हजार रुपये था और इसके अलावा मैं चिट फंड से 25 हजार रुपये प्रतिमाह तक कमा रही थी और वह भी सिर्फ 23-24 वर्ष की उम्र में। मैंने अमरीका जाने के लिये अधिक से अधिक बचत करने पर जोर दिया।’’

ज्योति की सबसे प्रबल इच्छा कार चलाने की थी और उन्हें बखूबी इस बात का इल्म था कि यह सिर्फ अमरीका जाकर ही संभव होगा। ‘‘घर पर कई तरह के प्रतिबंध थे। मेरे पति ने मेरे लिये सिर्फ यह अच्छा किया था कि उन्होंने मुझे दो बच्चियों की माँ बना दिया था जिन्होंने मुझे जीवन से लड़ने का जज्बा दिया,’’ वे व्यंग की भंगिमा में कहती हैं। ‘‘मेरी दोनों बेटियां मेरे जैसे ही हैं। वे कड़ी मेहनत करती हैं और समय को बिल्कुल भी बर्बाद नहीं करती हैं।’’ उनकी दोनों बेटियां साॅफ्टवेयर इंजीनियर हैं और दोनों ही शादी के बाद अमरीका में रह रही हैं।

आखिरकार उन्होंने सामने आई तमाम चुनौतियों को पार पाया और अपने सपनों की दुनिया में पहुंच गईं। उन्होंने न्यू जर्सी में रहने वाले एक गुजराती परिवार के साथ पीजी के रूप में रहना प्रारंभ किया जिसके बदले उन्हें प्रतिमाह 350 डाॅलर चुकाने पड़ते थे। उन्होंने वहां पर अपना व्यापार प्रारंभ करने से पहले सेल्स गर्ल से लेकर बच्चों को संभालने वाली आया के अलावा होटल में रूम सर्विस करने और एक गैस स्टेशन पर अटेंडेंट के रूप में काम किया।

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ज्योति बताती हैं कि दो वर्ष के बाद जब वे भारत वापस लौटीं और अपने गांव के शिव मंदिर में पूजा के लिये गईं तो पुजारी तो उनसे कहा कि उन्हें अमरीका में स्थाई नौकरी नहीं मिलेगी और अगर वे वहां अपना व्यापार करें तो उन्हें आशातीत सफलता मिलेगी। उस समय उन्होंने पुजारी की बातों को हंसी में उड़ा दिया लेकिन शायद पुजारी के यह शब्द भविष्य में सच होने थे। आखिरकार कुछ समय बाद वे अपनी बेटियों और पति को भी अपने साथ अमरीका ले गईं।

भारत के स्वर्गीय राष्ट्रपति अब्दुल कलाम को अपना आदर्श मानने वाली ज्योति कहती हैं कि कलाम हमेशा उनसे कहते थे कि 11 से 16 वर्ष की आयु में किसी भी बच्चे के चरित्र का निर्माण होता है। ‘‘मैंने अपने जीवन का वह समय अनाथालय में बिताया था। हालांकि उस समय भी मैं दूसरे बच्चों की सहायता करती थी और परेशान बच्चों का खयाल रखने के अलावा उनके लिये टाॅफी इत्यादि का प्रबंध करती थी।’’

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पूर्व राष्ट्रपति स्व. अब्दुल कलाम के साथ ज्योति

पुराने समय को याद करते हुए ज्योति उस समय में खो जाती हैं जब उन्हें गर्मियों के कठोर दिनों में नंगे पांव मीलों का सफर तय करना पड़ता था। जिज्ञासा में मैंने उनसे पूछा कि आज उनके पास कितने जोड़ी जूते हैं? ‘‘आज मेरे पास 200 जोड़ी हैं और मुझे अपने कपड़ों से मैच करने वाले तलाशने में 15 से 20 मिनट का समय लगता है।’’ और अब वे ऐसा भी करें तो क्यों? एक अध्यापक के रूप में काम करते समय उन्होंने पहली बार अपने लिये कुछ खरीदा था। ‘‘उस समय मेरे पास सिर्फ दो ही साड़ियां थीं और मुझे एक तीसरी साड़ी की बहुत आवश्यकता थी। उस समय मैंने 135 रुपये में अपने लिये एक साड़ी खरीदी और आपको शायद ही विश्वास हो मैंने अभी भी वह साड़ी बहुत संभालकर रखी है।’’ मुझे उनसे पूछना पड़ा कि वर्तमान में आपकी अल्मारी में सबसे महंगी साड़ी कितने की है? चेहरे पर बेचैनी भरी हंसी के साथ वे बताती हैं, ‘‘मैंने अपनी छोटी बेटी की शादी में पहनने के लिये 1 लाख 60 हजार रुपये की नीले और सिल्वर रंग की साड़ी खरीदी थी।’’

वर्तमान में ज्योति अमरीका में छः और भारत में दो मकानों की मालकिन हैं। और हाँ, उन्होंने अपने कार चलाने के सपने को हकीकत में बदला और अब वे मर्सिडीज़ बेंज चलाती हैं। इसके अलावा वे काले चश्मे पहनती हैं और अपने बाल भी खुले रखती हैं।

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ज्योति की इस यात्रा की इस महत्ता को पहचानते हुए काकतीय विश्वविद्यालय ने अंग्रेजी की डिग्री के कोर्स में उनपर एक अध्याय को शामिल किया है।

‘‘यकीन मानिये एक दिन मैंने इसी विश्वविद्यालय में नौकरी मांगने के लिये विनती की थी जिसे इन्होंने बड़ी बेरुखी से ठुकरा दिया था। आज गांवों के रहने वाले कई बच्चे मेरे बारे में पढ़ते हैं और यह जानने की जिज्ञासा रखते हैं कि यह जीवित व्यक्ति कौन है।