बेनूर जिंदगी में भर रहे ज्ञान का नूर, दान से चल रहा स्कूल
नेत्रहीन बच्चे गीत-संगीत में राष्ट्रीय स्तर और शतरंज में राज्य स्तर की प्रतियोगिताओं में हिस्सा ले चुके हैं। इसमें शिक्षक किंतु महतो की अहम भूमिका है।
बचपन से ही नेत्र दिव्यांगता झेल रहे मुरलीनगर स्थित नेत्रहीन आवासीय विद्यालय के शिक्षक किंतु महतो आज नेत्रहीन बच्चों को शिक्षित कर रहे हैं। यहां पढ़ने वाले सभी 22 बच्चे नेत्रहीन हैं। यहां पढ़ रहा सबसे कम उम्र का बाबू कर्मकार सात बरस का है। सभी बच्चे किंतु महतो की पढ़ाने की शैली के कायल हैं। तेरे जुनूं का नतीजा जरूर निकलेगा, इस स्याह समंदर से नूर निकलेगा। इन पंक्तियों को अपनी बेनूर जिंदगी का किंतु महतो ने मकसद बना लिया है।
वे कहते हैं कि भगवान ने आंखों को रोशनी न दी तो क्या, ज्ञान का प्रकाश ही काफी है, जीवन में उजाले के लिए। आंखें तो माध्यम होती हैं, देखता हमेशा दिमाग है। किंतु ने इंटर तक पढ़ाई की। उनकी अंग्रेजी भाषा पर मजबूत पकड़ है। वे धाराप्रवाह अंग्रेजी बोलते हैं। पश्चिम बंगाल के पुरुलिया के रहने वाले किंतु ने भी सातवीं तक की शिक्षा इसी आवासीय विद्यालय से ली थी। दसवीं की शिक्षा वर्द्धमान और 12 वीं की पढ़ाई झारखंड बोर्ड से की। 2008 से 2011 तक वर्द्धमान के निजी स्कूल में शिक्षण किया। अगस्त 2016 में वे नेत्रहीन आवासीय विद्यालय से जुड़े। ब्रेल लिपि से बच्चों को शिक्षित करने लगे। यह विद्यालय धनबाद ब्लाइंड रिलीफ सोसाइटी के तहत संचालित होता है।
परिवार पर बोझ न बन अपने पैरों पर खड़े हुए:
किंतु कहते हैं कि परिवार में पांच भाई और दो बहनें हैं। सिर्फ वही नेत्रहीन हैं। आज समय बदल रहा है। खुद से कुछ करेंगे नहीं तो एक समय बाद परिवार भी आपको बोझ मानने लगता है। बस यही सोच अपने जैसे ही बच्चों को शिक्षित करने का बीड़ा उठाया। समाज को कुछ देंगे, तभी आपकी अहमियत समझ में आएगी। नेत्रहीन बच्चों को अपनत्व और प्रशिक्षण दिया जाए, तो वे नाक, कान और स्पर्श की मदद से रोजमर्रा के काम कर सकते हैं। जीवनयापन के लिए पैसे भी कमा सकते हैं। यहां ऐसे ही बच्चों का जीवन संवारा जा रहा है।
राष्ट्रीय स्तर पर नाम कर चुके यहां के बच्चे:
यहां के बच्चे भी सपने देखते हैं। गीत-संगीत हो, क्रिकेट का मैच हो या शतरंज की बिसात, सभी में बच्चे पारंगत हो रहे हैं। नेत्रहीन बच्चे गीत-संगीत में राष्ट्रीय स्तर और शतरंज में राज्य स्तर की प्रतियोगिताओं में हिस्सा ले चुके हैं। इसमें शिक्षक किंतु महतो की अहम भूमिका है। यहां के केयर टेकर राजेश कुमार की आंखों से ये बच्चे सबकुछ देखते हैं। गंगा बच्चों और शिक्षकों लिए भोजन तैयार करती हैं। जो पति राजेश के साथ स्कूल परिसर में ही रहती हैं।
दान से चल रहा स्कूल:
नेत्रहीन विद्यालय का संचालन धनबाद ब्लाइंड रिलीफ सोसाइटी करती है। इसके सचिव वीरेश दोषी के मुताबिक 1970 में स्कूल की स्थापना झरिया के मोहलबनी में हुई थी। 3 दिसंबर 2010 को मुरलीनगर के नए भवन में यह स्कूल दुबारा शुरू हुआ। यहां पहली से आठवीं तक के छात्र हैं। स्कूल के पदेन अध्यक्ष डीसी, सह अध्यक्ष कॉमर्शियल टैक्स के संयुक्त आयुक्त और कोषाध्यक्ष जिला शिक्षा अधीक्षक हैं। नेत्रहीन विद्यालय का संचालन दान की राशि से होता है। सरकार से फंड नहीं मिलता। प्राचार्य और शिक्षकों को वेतन भी दान की राशि से दिया जाता है।
उपलब्धियां:
जयपुर में गीत संगीत प्रतियोगिता में यहां के छात्र अर्जुन, सोनू, दीपक, रोहित बने विजेता, रोहिणी नई दिल्ली सेक्टर-5 में ब्रेल रीडिंग-राइटिंग में यहां बच्चे बने प्रतिभागी, रांची में खेलकूद प्रतियोगिता में दौड़, ऊंची कूद, लंबी कूद, डिस्कस थ्रो, शतरंज में जीते पुरस्कार, आइआइटी आइएसएम में खेलकूद प्रतियोगिता में जीते पुरस्कार।
आशा है इनकी कहानी पढ़कर आपको जरूर प्रेरणा मिली होगी।
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