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एक वर्ष में आठ परिवारों को जोड़ा काउंसलर अनिता पटेल और उनकी टीम ने, दाम्पत्य जीवन जोडऩे का मकसद

मंजिलें अगर जिद्दी हैं तो इरादों को भी जिद्दी बनाना पड़ता है। कुछ इसी तरह से अपने इरादों को जिद्दी बनाकर महिला सामाख्या सशक्तीकरण केंद्र की मछलीशहर शाखा की काउंसलर अनिता पटेल उनकी टीम छोटी-छोटी बातों को लेकर टूटने के कगार पर पहुंचे आठ परिवारों को जोड़कर उनमें खुशी बिखेर दी है।

जीना इसी का नाम है कि तर्ज पर अपने जीवन को सार्थक बना रहीं अनिता पटेल दूसरों की खुशी में ही अपनी खुशी देख रही हैं। कहती हैं कि इस समय कुछ लोग दाम्पत्य जीवन में छोटी सी कड़वाहट आते ही अलग रहने का फैसला कर लेते हैं। ऐसे में धीरे-धीरे उनका दाम्पत्य जीवन टूटकर तलाक की कगार तक पहुंच जा रहा है। तलाक होते ही उनके बच्चे भी मां-बाप का इकठ्ठा प्यार मिलने से अनाथों की जिदंगी जीने लगते हैं। ऐसे लोगों के बीच की आपस कड़वाहट भुलाकर दोबारा हंसी-खुशी से दाम्पत्य जीवन शुरू करवाने का सतत प्रयास अनिता उनकी टीम कर रही है। इनके इस प्रयास से एक वर्ष में कम से कम आठ जोड़े जो टूट की कगार पर थे। उनको आपस में बैठाकर दाम्पत्य जीवन में आई कड़वाहटों को भुलाकर दोबारा नई जिंदगी शुरू करवाया। आज ये सभी जोड़ें अपने बच्चों के साथ हंसी-खुशी जीवन जी रहे हैं। इसके अलावा अनिता और उनकी टीम करीब दर्जनों जोड़ों की अभी काउंसिलिंग कर रही है। ये जोड़े अभी कुछ मतभेद के कारण दूर-दूर रह रहे हैं। उनका आपसी तालमेल करवा कर पुन: सुखी वैवाहिक जीवन के प्रयास में लगी हैं।

बच्चों की दशा देख आया विचार

अनिता कहती हैं कि सभी की तरह उनकी भी इच्छा पढ़-लिखकर अच्छी सरकारी नौकरी करने की थी। पढ़ाई के दौरान ही अपने आसपास ऐसे कई मामले देखे जो पति-पत्नी के अलग होते ही उनके बच्चें अनाथों वाली ङ्क्षजदगी जी रहे थे। कुछ तो बेचारे कमाई का कोई जरिया होने पर बचपन में ही मजदूरी कर अपना मां का जीवनयापन करते थे। उसी वक्त मैंने ठान लिया कि मुझे ऐसे लोगों की जिंदगी को दुबारा जोड़कर उनके जीवन में खुशी लाना है। इसके बाद 2008 से महिला सामाख्या सशक्तीकरण शाखा से जुड़कर टूटे दाम्पत्य जीवन को पुन: जोडऩे का प्रयास कर रही हूं।

पिता से मिली प्रेरणा

अनिता ने अनुसार उनके पिताजी लालमणि पटेल पेशे से किसान हैं, किंतु वह हमेशा अनाथों गरीबों की भलाई की ही बात कहा करते थे। उनकी यही बात बचपन से मेरे जेहन में समा गई थी। इसी कड़ी में टूटे दाम्पत्य जीवन को पुन: जोड़कर उनके जीवन में खुशी लाकर बच्चों को अनाथों की जिंदगी जीने से बचाने का प्रयास कर रही हूं।

यह जोड़े मतभेद छोड़कर पुन: हुए खुशहाल

एक वर्ष में अनिता उनकी टीम के प्रयास से तलाक अलग रहने की कगार पर पहुंचे संजू-कन्हैयालाल निवासी हरदुआ मडिय़ाहूं, फूल कुमारी-श्रवण कुमार निवासी उडली शाहगंज, संजना-अच्छेलाल निवासी मुंगराबादशाहपुर, सुनीता-रमापति निवासी कसेरवा बरसठी, सुषमा-सतीश मौर्य निवसी हरबंशपुर,

सरोजा-सुभाष निवासी मुकुंदपुर मडिय़ाहूं, अनिता-संजय निवासी मीरपुर मछलीशहर बीना-श्यामलाल निवासी पुरवा मछलीशहर अब आपसी मतभेद भूलाकर एक साथ हंसी-खुशी जीवनयापन कर रहे हैं। इसके अलावा अनिता उनकी टीम द्वारा अभी लगभग पचास जोड़ों को पुन: एक करने के लिए काउंसिलिंग कर रही है।

बेटी पढ़ाओ, बेटी बढ़ाओ अभियान में कर चुकी हैं कार्य

अनिता भारत सरकार द्वारा 2015 में बेटियों को बचाने पढ़ाने के लिए चलाए जा रहे अभियान में गोरखपुर में रहकर भी कार्य कर चुकी हैं। इसके अलावा ये 2017 में सोनभद्र जिले में पानी का स्तर ऊपर लाने के लिए वाटर हार्वेस्टिंग पर भी कार्य कर चुकी हैं।

परिवार को समय नहीं दे पाने का है मलाल

वाराणसी के बड़ागांव निवासी अनिता का पढ़ाई दौरान ही विवाह हो गया था। उनके पति ने अपनी पढ़ाई रोककर उनकी शिक्षा पूरी करवाया। शिक्षा पूरी होते ही 2008 से महिला सशक्तीकरण केंद्र से जुड़कर अपने लक्ष्य में जुट गईं। अब इन्हें समाजसेवा के दौरान अपने दोनों बच्चों पति को समय नहीं देने का मलाल हमेशा रहता है।

आशा है इनकी कहानी पढ़कर आपको जरूर प्रेरणा मिली होगी।

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