पाकिस्तान ने गुजरात के जूनागढ़ को दिखाया अपने नक्शे में, जानिए सन् 1948 में कैसे बना था भारत का हिस्सा
पाकिस्तान सरकार ने मंगलवार को देश का नया राजनीतिक नक्शा जारी किया है। इस नक्शे में जम्मू कश्मीर और सियाचिन पर तो उसने अपना दावा जताया ही है साथ ही सर क्रीक रेखा पर स्थित गुजरात के जूनागढ़ पर भी दावा ठोंक दिया है। विशेषज्ञों के मुताबिक पाकिस्तान ने यह कदम जान-बूझकर यह कदम उठाया है। उनका कहना है कि दरअसल प्रधानमंत्री इमरान खान अपने देश की जनता को जम्मू कश्मीर में आर्टिकल 370 हटने के एक वर्ष पूरा होने के मौके पर सांत्वना देना चाहते थे। यह नक्शा उसी का नतीजा है। लेकिन अगर आप जूनागढ़ के इतिहास पर नजर डालेंगे तो समझ जाएंगे कि यह फैसला भारत को भड़काने के मकसद से भी लिया गया है।
भारत-पाकिस्तान के दावे अलग
पाकिस्तान के नए नक्शे ने कई लोगों को हैरान कर दिया है। अभी तक जो पाकिस्तान जम्मू कश्मीर पर दावा करता था अब गुजरात के हिस्सों को भी अपना बताने लगा है। गुजरात का जूनागढ़ और मनवादर को सन् 1948 में जनमत संग्रह के बाद भारत में शामिल कर लिया गया था। कहा जा रहा है कि पाकिस्तान की नजरें यहां मौजूद खनिज संपदाओं पर हैं। पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी के मुताबिक सर क्रीक पर भारत जो दावा करता था, नक्शे में उसे अब खारिज कर दिया है। पाक का दावा है कि उसकी सीमा पूर्वी तट की ओर है जबकि भारत का दावा है कि यह पश्चिम की ओर है।
70 साल से सर क्रीक पर विवाद
पाकिस्तान का कहना है कि यहां भारत, पाकिस्तान के सैकड़ों किलोमीटर के ईईजेड पर कब्जा करना चाहता है।70 साल से सर क्रीक को लेकर विवाद जारी है। कच्छ के रण के दलदल के क्षेत्र में सर क्रीक 96 किमी चौड़ा पानी से जुड़ा मुद्दा है। पहले इसे बाण-गंगा के नाम से जाना जाता था। यह अरब सागर में खुलता है और एक तरह से गुजरात के रण को पाकिस्तान के सिंध प्रांत से अलग करता है। इसे लेकर कच्छ और सिंध के बीच समुद्री सीमा पर विवाद है। सर क्रीक मछुआरों के लिए अहम संपदा है और इसे एशिया का सबसे बड़ा फिशिंग ग्राउंड माना जाता है। यह भी माना जाता है कि यहां पर तेल और गैस का भंडार भी मौजूद है।
क्या हुआ था सन् 1947 में
पाकिस्तान का दावा है कि सन् 1914 में सिंध सरकार और कच्छ के राव महाराज के बीच हुए बॉम्बे सरकार रेजोल्यूशन के तहत पूरा क्रीक पाकिस्तान का है। इस प्रस्ताव के तहत दोनों क्षेत्रों के बीच सीमा क्रीक के पूर्व की ओर की गई जबकि भारत का दावा है कि 1925 में बने नक्शे के मुताबिक यह बीच में है।1947 में 15 अगस्त को अंग्रेजों से आजादी से ठीक पहले तक जम्मू-कश्मीर और हैदराबाद के अलावा गुजरात के जूनागढ़ ने भारत में शामिल होने का फैसला नहीं किया था। जूनागढ़ में करीब 80 फीसदी हिंदू आबादी थी और भारत सरकार की कोशिश थी कि जूनागढ़ के नवाब मोहम्मद महाबत खानजी III भारत के साथ आ जाएं लेकिन वह राजी नहीं थे।
पटेल ने सन् 1947 में भेजी सेना
नवाब ने 15 सितंबर, 1947 को पाकिस्तान में विलय का फैसला किया। इस फैसले से जूनागढ़ की जनता भड़क गई और राज्य के कई हिस्से में नवाब के शासन के खिलाफ लोग उठ खड़े हुए।इससे नवाब अपने परिवार के साथ कराची चले गए। इसके बाद सरदार पटेल ने पाकिस्तान से जूनागढ़ के विलय की मंजूरी को रद्द करने और जनमत संग्रह कराने को कहा। जब पाकिस्तान ने इनकार कर दिया तो सरदार पटेल ने 1 नवंबर, 1947 को जूनागढ़ में भारतीय सेना भेज दी। इसके बाद उसी साल दिसंबर में वहां जनमत संग्रह हुआ जिसमें 99 फीसदी लोगों ने भारत में रहने को चुना। फरवरी 1948 को जूनागढ़, भारत में शामिल हो गया।
15 फरवरी को भारत में आया मनवादर
जूनागढ़ की तरह ही मनवादर में भी 22 अक्टूबर 1947 को भारत ने सत्ता संभाल ली और भारतीय पुलिसबल मनवादर पहुंच गया। यहां के खान साहिब गुलाम मोइनुद्दीन खान्जी ने भी पाकिस्तान में शामिल होना स्वीकार कर लिया था। हालांकि, जूनागढ़ के अंतर्गत आने की वजह से मनवादर के पास इसका अलग अधिकार नहीं था। खान साहिब को सोनगढ़ में नजरबंद कर दिया गया। यहां कार्यकारी प्रशासक को तैनात कर दिया गया और फिर रायशुमारी कराई गई जिसमें भारत के समर्थन में वोट पड़े। इसके बाद 15 फरवरी 1948 को इसका भारत में विलय हो गया।