यूपी की सियासत में कुर्मी वोट बैंक पर बढ़ा घमासान

उत्तर प्रदेश की राजनीति में कुर्मी समुदाय लगातार चर्चा में बना हुआ है। विधानसभा में 41 विधायक और 5 विधान परिषद सदस्य तथा संसद में 11 सांसद इस समाज से आते हैं। इसके बावजूद केंद्र और प्रदेश में कुर्मी नेतृत्व का प्रतिनिधित्व अपेक्षित स्तर पर नहीं है।
मोदी सरकार में केवल राज्य मंत्री
मोदी सरकार में कुर्मी समाज को दो राज्य मंत्री—पंकज चौधरी और सहयोगी दल की अनुप्रिया पटेल—के रूप में प्रतिनिधित्व मिला है। लेकिन इतनी बड़ी संख्या के बावजूद कैबिनेट मंत्री स्तर पर किसी कुर्मी चेहरे को जगह नहीं दी गई।
योगी मंत्रिमंडल में भी सीमित असर
योगी सरकार में राकेश सचान, स्वतंत्र देव सिंह और आशीष पटेल कैबिनेट मंत्री हैं, जबकि संजय गंगवार राज्य मंत्री हैं। लेकिन इनमें से किसी की भी पकड़ प्रदेश स्तर पर मजबूत नहीं दिखती।
- स्वतंत्र देव सिंह की कार्यशैली को लेकर असंतोष है।
- राकेश सचान केवल कानपुर क्षेत्र तक सीमित हैं।
- आशीष पटेल सहयोगी दल से आते हैं, इसलिए भाजपा में उनका असर कम है।
- संजय गंगवार की पहचान पीलीभीत तक सिमटी है।
पहले था मजबूत दबदबा
कल्याण सिंह के दौर में संतोष गंगवार, ओमप्रकाश सिंह, विनय कटियार, प्रेमलता कटियार और रामकुमार वर्मा जैसे नेता कुर्मी समाज के मजबूत स्तंभ थे। उनका आदेश पूरे प्रदेश में मान्य होता था। आज वैसी स्थिति नहीं है।
सपा की रणनीति कामयाब
2014 और 2019 में कुर्मी वोट भाजपा के साथ रहा, लेकिन 2022 से यह समीकरण बदल गया।
- सपा ने 27 ओबीसी सीटों में से 10 पर कुर्मी प्रत्याशी उतारे, जिनमें अधिकतर को जीत मिली।
- भाजपा ने 6 कुर्मी प्रत्याशियों को टिकट दिया, जिनमें से केवल 3 ही जीत सके।
उत्तर प्रदेश की करीब 50 विधानसभा और 10 लोकसभा सीटों पर कुर्मी वोट निर्णायक भूमिका निभाता है। यही कारण है कि भाजपा का स्ट्राइक रेट 50% से नीचे चला गया।
2027 में भाजपा के लिए बड़ी चुनौती
विशेषज्ञों का मानना है कि स्थानीय नेतृत्व की कमी और जनता से दूरी भाजपा के लिए खतरे का संकेत है। यदि भाजपा ने समय रहते सुधार नहीं किया तो 2027 का विधानसभा चुनाव सपा के पक्ष में जा सकता है।
मुलायम–बेनी युग जैसे समीकरण
ओबीसी में भाजपा की पकड़ पहले जैसी नहीं है। 6% आबादी वाला कुर्मी समाज आज उपेक्षित महसूस कर रहा है। अखिलेश यादव का “पड़ा” नारा लगातार असरदार होता दिख रहा है। यदि मौजूदा हालात ऐसे ही रहे तो भाजपा के कुर्मी मंत्रियों की बेरुखी का खामियाज़ा 2027 के चुनाव में साफ़ झलक सकता है।
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