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गेहूं की इस किस्म से 75 क्विंटल प्रति हैक्टेयर का उत्पादन
गेहूं की किस्म पूसा तेजस से उत्पादन
इस वर्ष मार्च माह में लगातार तेज गर्मी के कारण गेहूं के उत्पादन पर बुरा असर देखने को मिल रहा है, जिससे गेहूं के उत्पादन मे सामान्य उत्पादन से कमी देखने को मिल रही है । रबी वर्ष 2021–22 का समापन हो चुका है, जिसके साथ ही अधिकांश किसानों ने गेहूं की उपज को मंडियों में बेच भी दिया है।
कुछ राज्यों में गेहूं का उत्पादन औसत उत्पादन से क़रीब 50 प्रतिशत तक कम रहा है, इसके बाबजूद भी कई किसान हैं, जिन्होंने गेहूं की बंपर पैदावार प्राप्त की है।
दरअसल मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र में गेहूं की कटाई मार्च के पहले सप्ताह में शुरू हो जाती है, जिसके कारण मार्च माह में पड़ने वाले गर्मी का असर यहाँ की फसल पर नहीं पड़ा है।
मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले के चिल्लोद पिपलिया गाँव के किसान वल्लभ पाटीदार ने विपरीत मौसम में भी गेहूं का बंपर उत्पादन प्राप्त किया है |
वल्लभ पाटीदार ने बताया कि – इस वर्ष गेहूं का उत्पादन पिछले वर्ष की तुलना में कम है, इसके बावजूद भी उन्होंने लगभग 75 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से उत्पादन प्राप्त किया है |
गेहूं की पूसा तेजस किस्म का किया था उपयोग
किसान वल्लभ पाटीदार ने बताया कि – वह पिछले 2 वर्षो से गेहूं की “पूसा तेजस HI 8759” किस्म की बुवाई कर रहे हैं | इसका उत्पादन तथा रोग प्रतिरोधक क्षमता अन्य दुसरे गेहूं की किस्मों से काफी अधिक है। इस वर्ष गेहूं के लिए अच्छा मौसम नहीं रहने के बावजूद भी इसका उत्पादन पर ज्यादा असर नहीं पड़ा है।
किसान ने आगे बताया की उन्होंने इस वर्ष गेहूं की इस किस्म से लगभग 75 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से उत्पादन प्राप्त किया है।
वैसे तो गेहूं की कठिया प्रजाति की इस किस्म की अधिकतम उपज क्षमता 75.5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है, वही इसकी औसत उपज 57 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। परंतु मालवा क्षेत्र के कई किसानों ने इस वर्ष इस किस्म से 100 क्विंटल प्रति हेक्टेयर से अधिक की पैदावार प्राप्त की है।
इस किस्म में तना और पत्ती रतुओं के विरुद्ध श्रेष्ठ स्तर का फील्ड प्रतिरोध है, और तना रतुआ के प्रति इसका सर्वोच्च एसीआई मान 6.0 है, जबकि पत्ती रतुआ के प्रति 4.1 है ।
किसान को कहाँ से मिली गेहूं की किस्म के बारे में जानकारी
इस सवाल का जवाब देते हुए किसान ने बताया कि – गेहूं के पूसा तेजस प्रजाति की जानकारी उन्हें अपने ज़िले में स्थित कृषि विज्ञान केंद्र मंदसौर से प्राप्त हुई थी ।
उन्होंने आगे बताया कि – मंदसौर कृषि विज्ञान केंद्र के सीनियर कृषि वैज्ञानिक डॉ. जी.एस. चुण्डावत ने इस किस्म की खेती के विषय में जानकारी दी थी, उनके मार्गदर्शन में ही किसान ने इस किस्म की खेती की है। आगे किसान ने जानकारी दी की – उन्हें इस किस्म के प्रमाणित बीज कृषि विज्ञान केंद्र के द्वारा ही उपलब्ध कराए गए थे ।
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