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डेयरी व्यवसाय: अपनी डेयरी खोलने के लिए बैंक से कैसे लें लोन? अपने इलाके में दुग्ध क्रांति लाने वाले भूपेंद्र पाटीदार ने बताए टिप्स

भारत को दुनिया का एग्री स्टार्टअप हब कहना गलत नहीं होगा। स्टार्टअप वेंचर्स को सरकार बड़े स्तर पर बढ़ावा भी दे रही है। भारत में डेयरी उद्योग रोजगार देने वाले बड़े सेक्टर्स में शामिल है। आधुनिक समय में पशुपालन का चलन काफी तेजी से आगे बढ़ रहा है। इसका श्रेय हर उस पशुपालक को जाता है जो डेयरी क्षेत्र (Dairy Farming) को बढ़ावा दे रहे हैं। कोरोना काल में लॉकडाउन के दौरान जहां कई व्यवसायों पर ताले लगे, 2021 में डेयरी सेक्टर मजबूती के साथ खड़ा रहा। Kurmi World आपके लिए डेयरी व्यवसाय की  सक्सेस स्टोरीज़ लेकर आया है।

मध्य प्रदेश खरगोन ज़िले के नांद्रा गाँव से आने वाले भूपेंद्र पाटीदार ने जब डेयरी व्यवसाय की शुरुआत की, तो उनके क्षेत्र में डेयरी कम थीं और अब एक ही गाँव में चार-चार डेयरी हैं। उन्होंने कई को डेयरी यूनिट खुलवाने में मदद की और आज भी कर रहे हैं।

कहते हैं कि मन में कुछ करने का जुनून हो तो कठिन से कठिन परिस्थितियों को भी इंसान की मेहनत के आगे झुकना पड़ता है। एक ऐसे ही युवा प्रगतिशील किसान भूपेंद्र पाटीदार के बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं, जिन्होंने कुछ अलग करने की ठानी और उसे पूरा करने के लक्ष्य पर लग गए। आज डेयरी व्यवसाय से जुड़े किसान उनसे राय लेने आते हैं। कई संस्थानों में जाकर वो बाकायदा, लेक्चर भी देते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया से खास बातचीत में भूपेंद्र पाटीदार ने हमसे डेयरी क्षेत्र की कई बारीकियों को शेयर किया। पशुपालन करते हुए किन-किन बातों का ध्यान रखना ज़रूरी होता है, इसके बारे में विस्तार से बताया।

AC & ABC से ली ट्रेनिंग

भूपेंद्र मध्य प्रदेश खरगोन ज़िले के नांद्रा गाँव के रहने वाले हैं। बीएससी से ऐग्रिकल्चर की पढ़ाई करने के लिए कॉलेज में दाखिला लिया, लेकिन पारिवारिक परेशानियों के कारण उन्हें अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी। सब छोड़कर वो वापस अपने गाँव गए और खेती करनी शुरू कर दी। एक दो साल बाद खेती में उन्हें थोड़ा नुकसान झेलना पड़ा। फसल बर्बाद हुई और बाज़ार में दाम कम मिले। इसके बाद अतिरिक्त आय स्रोत की तलाश में वो लग गए। दोस्तों से बातचीत की और रिसर्च शुरूकर दी। इसी दौरान उन्हें एग्री क्लिनिक और एग्री बिजनेस सेंटर (AC & ABC) द्वारा मिलने वाली ट्रेनिंग के बारे में पता चला। वो दो महीने की ट्रेनिंग के लिए भोपाल चले आए। 

शुरुआत में 20 दिन में ही 50 हज़ार का नुकसान

भूपेंद्र पाटीदार कहते हैं कि दूर से इंसान को कृषि से जुड़े हर क्षेत्र में मुनाफ़ा दिखता है, लेकिन जब चुनौतियां आती हैं तो असल तस्वीर सामने जाती है। ट्रेनिंग से वापस लौटने के बाद उन्होंने डेयरी व्यवसाय करने का प्लान किया। इसके बारे में अपने परिवारवालों को बताया। भूपेन्द्र का परिवार खेती से पहले दूध के व्यवसाय से ही जुड़ा था, लेकिन इसमें उन्हें नुकसान झेलना पड़ा था। इस वजह से परिवारवाले उनके इस फैसले के पक्ष में नहीं थे। भूपेंद्र पाटीदार ने डेयरी व्यवसाय को लेकर और रिसर्च की। उनकी दादी ने इस फैसले में उनका साथ दिया और फिर भूपेंद्र ने पाटीदार डेयरी के नाम से डेयरी की शुरुआत कर दी। उन्होंने एक लाख 40 हज़ार में दो भैंसें खरीदीं  और दूध का काम शुरू कर दिया। इनमें से एक भैंस सही नहीं निकली। भूपेंद्र ने बातचीत में किसान ऑफ़ इंडिया ( Kisan of India ) को बताया  कि वो भैंस बहुत बीमार रहने लगी। 20 दिन के अंदर ही 70 हज़ार में लाई गई भैंस को 20 हज़ार में बेचना पड़ा, यानी सीधे सीधे 50 हज़ार रुपये का नुकसान।

दोस्तों के साथ मिलकर 7 हाईटेक (7 Hi-Tech)  की शुरुआत की

उनकी जगह कोई और होता तो शायद पीछे हट जाता, लेकिन भूपेंद्र जी-तोड़ मेहनत से बड़े स्तर पर इस बिज़नेस को आगे बढ़ाने में लग गए। उन्होंने बैंक में लोन के लिए अप्लाई किया। AC&ABC से प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार करवाई। AC&ABC ही प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार करके देता है। इस रिपोर्ट को फिर आप बैंक में दिखाते हैं। प्रोजेक्ट रिपोर्ट लेकर करीबन एक साल तक भूपेंद्र ने बैंक के कई चक्कर लगाए। जब जिस समय बैंक वाले बुलाते, वो पहुंच जाते। भूपेंद्र बताते हैं कि 365 दिन में से करीब 200 दिन उनके बैंक के चक्कर ही लगते थे। उन्होंने हार नहीं मानी और बैंक जाना जारी रखा। इसके साथ ही उन्होंने अपनी डेयरी में दो भैंसें और बढ़ा लीं। इनसे निकलने वाले दूध को दूसरी डेयरी में बेच दिया करते। भूपेंद्र बताते हैं कि होता ये था कि फिर यही लोग  इस दूध को ज़्यादा दामों में आगे बेच देते थे।

गाँव में पैदा किए रोज़गार के अवसर

इसके बाद भूपेंद्र ने अपने सात दोस्तों के साथ मिलकर 7 हाईटेक नाम से दूध डेयरी खोलने का फैसला किया। सबने मिलकर 15 से 20 हज़ार रुपये लगाए और लाख रुपये की लागत से गाँव में ही किराये पर जगह लेकर पूरा सेटअप चालू कर दिया। भूपेन्द्र कहते हैं कि शुरू से ही फोकस रहा कि हम कुछ ऐसा करें कि लोग शहर से गाँव में आयें। उन्हें रोज़गार की तलाश में बाहर नहीं, गाँव में ही अवसर मिले।

7 हाईटेक में अपनी भैंसों के दूध के साथ साथ-आस पास के छोटे किसानों से दूध और इसे बनने वाले प्रॉडक्ट्स जैसे छाछ, पनीर और दही खरीदने लगे। आज हज़ार से ऊपर किसान उनसे जुड़े हुए हैं। एक दिन का दूध कलेक्शन 1400 लीटर तक भी पहुंच जाता। बड़े-बड़े ऑर्डर आने लगें।

कोऑपरेटिव सोसाइटी के ज़रिए किसानों को देते हैं सस्ती दरों पर लोन

इसके बाद किसानों और युवाओं को और कैसे फ़ायदा पहुंचाया जाए, इसके लिए 7 हाईटेक ग्रुप ने 2018 में कोऑपरेटिव का गठन किया। इसके ज़रिए वो ज़रूरतमंदों लोगों को फ़ाइनेंस की सुविधा देते हैं। भूपेंद्र ने बताया कि शुरुआत में कोऑपरेटिव सोसाइटी खोलने का मुख्य उद्देश्य कम ब्याज दर में किसानों को मवेशी खरीद पर लोन का पैसा मुहैया कराना था। हर किसान 60 से 70 हज़ार का मवेशी नहीं खरीद सकता। कम ब्याज दर में ऐसे किसानों को पैसा उपलब्ध करवाते। आज इस कोऑपरेटिव सोसाइटी का टर्नओवर ही 7 से 8 करोड़ के आसपास है। आज सिर्फ़ जानवरों को ही नहीं, बल्कि दुकानदारों को भी ज़रूरत के हिसाब से लोन देते हैं।

भूपेंद्र से जानिए बैंक से लोन लेने की पूरी प्रक्रिया

भूपेंद्र ने किसान ऑफ़ इंडिया के हमारे पाठकों के साथ लोन आसानी से लेने के टिप्स भी साझा किये। वो बताते हैं कि जब उनका काम कुछ ज़ोर पकड़ने लगा तो इसी बीच बैंक से लोन का आवेदन भी मंजूर हो गया। खुद बैंक मैनेजर उनके घर आए। फिर उन्होंने पाटीदार डेयरी में भी ज़्यादा वक्त देना शुरू कर दिया। भूपेंद्र ने पुणे से जानवरों से दूध निकालने वाली मशीन खरीदी। इसके बाद मुर्रा नस्ल की 20 भैंसें खरीदीं। उनका ये पूरा प्रोजेक्ट 20 लाख का था। 20 लाख के प्रोजेक्ट में 4 लाख की वर्किंग कैपिटल बैंक को दिखानी पड़ती है और 16 लाख बैंक देता है। भूपेंद्र बताते हैं कि लोन देने की भी बैंक की अपनी प्रक्रिया होती है। मान लीजिए आपने बैंक में भैंस खरीदने के लिए एक लाख रुपये मुहैया कराने की ऐप्लिकेशन लगाई, तो  लोन मंजूर कराने  के लिए आपको पहले एक लाख रुपये का 20 फ़ीसदी बैंक  में जमा कराना होता है। जैसे ही आप बैंक में एक लाख का 20 फ़ीसदी यानी कि 20 हज़ार रुपये डालते हो, वैसे ही भैंस बेचनेवाले के खाते में सीधा पैसा पहुंच जाता है।

डेयरी व्यवसाय में मवेशियों के रखरखाव पर कैसे दें ध्यान?

मवेशियों के रखरखाव के लिए भूपेंद्र ने फ़ार्म में पानी के ऑटोमेटेड सिस्टम से लेकर फ़ॉगर तक लगाए। पानी के ऑटोमेटेड सिस्टम के ज़रिए जानवर जब उन्हें पानी की प्यास लगे तब पानी पी सकते हैं। भूपेंद्र बताते हैं कि इसमें हर दो भैंसों के बीच एक टबनुमा चैम्बर लगा होता है। इसमें एक लेवल तक पानी भरा होता है। मान लीजिए जानवर ने उसमें से पाँच लीटर पानी पी लिया, तो वो एक मिनट के अंदर-अंदर अपने आप फिर से भर जाएगा।

भूपेंद्र बताते हैं कि गर्मियों में उनके क्षेत्र का तापमान 45 डिग्री तक भी पहुंच जाता है। इन दिनों दूध का उत्पादन 100 से  60 प्रतिशत पर जाता है। 10 लीटर से सीधे 6 लीटर पर उत्पादन पहुंच जाता है। इसके लिए भूपेंद्र ने तापमान को कैसे कंट्रोल किया जाए, उसकी रिसर्च की। 45 से सीधा 35 डिग्री पर डेयरी फ़ार्म का तापमान लाने के लिए उन्होंने जानवरों के ऊपर लगे शेड पर फ़ॉगर सिस्टम लगवाए। फ़ॉगर में टाइमर सिस्टम लगा होता है। इससे शेड पर पानी की बौछार की जाती है, जिससे शेड के अंदर के तापमान को कंट्रोल करने में मदद मिलती है। कंक्रीट का पक्का शेड बनाया। भूपेंद्र बताते हैं कि इन सब में ज़्यादा लागत ज़रूर आती है, लेकिन मवेशियों का रखरखाव होगा तभी वो अच्छा उत्पादन देंगे

मुर्रा नस्ल को ही क्यों चुना?

भूपेंद्र बताते हैं कि जब उनका परिवार डेयरी क्षेत्र में था, तब मुर्रा नस्ल ही उनके पास थी। उनके पिताजी और अन्य सदस्यों का मानना था कि मुर्रा नस्ल ही बेहतर है। वो उनके क्षेत्र के मौसम के हिसाब से ढल सकती है। शुरुआत में जहां उनके परिवार वाले डेयरी बिज़नेस के पक्ष में नहीं थेबाद में उन्हें अपने परिवार का भी सहयोग मिला। लाखों का टर्नओवर और अच्छा मुनाफ़ा होने लगा। डेयरी उत्पादन से होने वाले मुनाफ़े को लेकर भूपेंद्र  कहते हैं कि अगर कोई 20 मुर्रा नस्ल का पालन करता है, तो वो महीने का 30 से 40 हज़ार का मुनाफ़ा कमा सकता है। अगर प्रोसेसिंग से जुड़ते हैं तो ये मुनाफ़ा 60 से 70 हज़ार तक भी पहुंच सकता है।

किसानों की उपज को बाज़ार तक पहुंचाने का किया काम

ये सब करने के बीच ही पुणे की जिस फ़ार्मर किंग कंपनी से भूपेंद्र ने दूध निकालने वाली मशीन खरीदी थी, वहां से जॉब का ऑफ़र आया। अपने गाँव में रहते हुए कंपनी के प्रॉडक्ट्स को स्थानीय बाज़ार उपलब्ध कराना उनकी ज़िम्मेदारी थी। उन्होंने क्षेत्र के तीन युवाओं को भी अपने साथ जोड़ लिया। इन युवाओं का काम खरगोन जिले के रोज़ के 20 किसानों से मिलने का था। ये किसानों की समस्याओं को जान कर उनका समाधान करते। इस तरह क्षेत्र के तीन लड़कों को रोज़गार मिला। अभी भी इस कंपनी से भूपेंद्र जुड़े हुए हैं।

इसके अलावा अपने एक दोस्त और पार्टनर, जिनका नाम भी भूपेन्द्र है, उनके साथ मिलकर महिष्मति  ब्रांड की शुरुआत की। इसका मकसद मसाले की खेती कर रहे किसानों को बाज़ार मुहैया कराना है। इसके ज़रिए वो किसानों से मिर्च, धनिया, हल्दी वगैरह खरीदते हैं और फिर उसे प्रोसेस और पैकेजिंग कर महिष्मति  ब्रांड के नाम से बाज़ार में बेचते हैं।

राज्य सरकार से मिला पुरस्कार, लोगों को देते हैं सलाह

डेयरी के क्षेत्र में उनके योगदान को लेकर भूपेंद्र को राज्य सरकार की ओर से सफल उद्यमी के पुरस्कार से भी नवाज़ा गया है। पूरे भारत से इस अवॉर्ड के लिए 50 लोगों को चुना गया था। मध्य प्रदेश से दो लोग थे, जिनमें डेयरी क्षेत्र में क्रांति लाने के लिए उन्हें ये सम्मान मिला। आज भूपेन्द्र डेयरी क्षेत्र में रुचि रखने वाले युवाओं को ट्रेनिंग भी देते हैं। उन्हें डेयरी व्यवसाय के गुर सिखाते हैं। साथ ही नाबार्ड द्वारा आयोजित मीटिंग में भी जाते हैं।

अपने क्षेत्र में डेयरी क्षेत्र में किया सराहनीय काम

किसानों को सलाह देते हुए भूपेन्द्र कहते हैं कि क्वालिटी दोगे तो मांग अपने आप बढ़ेगी। किस्मत के भरोसे बैठकर कुछ नहीं होगा। परिस्थितियों से लड़कर मेहनत करनी होगी, भागदौड़ करनी होगी। भूपेन्द्र ने बताया कि जब उन्होंने डेयरी व्यवसाय की शुरुआत की थी तो उनके क्षेत्र में डेयरी कम थीं  और अब एक ही गाँव में चार-चार डेयरी हैं। उन्होंने कई को डेयरी यूनिट खुलवाने में मदद की और आज भी करते हैं। 

सब सही चल ही रहा था कि 2019 में अचानक भूपेंद्र ने अपने पिता को खो दिया। पिता की आकस्मिक मौत से उन्हें धक्का लगा। उन्होंने अपना लोन क्लियर कराया और मवेशियों को बेच दिया। आज  वो अपनी डेयरी  के लिए हज़ारों छोटे किसानों से दूध और इसके बाई-प्रॉडक्ट्स खरीदते हैं। भूपेंद्र बताते हैं कि आज भी कोई ज़रूरतमंद उनसे डेयरी क्षेत्र से जुड़ी राय लेने आता है, तो वो सब काम छोड़कर उनसे बात करते हैं। भूपेंद्र कहते हैं कि उनकी एक राय से अगर किसी के घर पैसे आएं, उसकी ज़िंदगी में अच्छा बदलाव आए, यही उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि है।

 

तस्वीर साभार: National Institute of Agricultural Extension Management

मध्य प्रदेश खरगोन ज़िले के नांद्रा गाँव के रहने वाले भूपेंद्र पाटीदार का परिवार दूध व्यवसाय से पहले ही जुड़ा था, लेकिन इसमें उन्हें नुकसान झेलना पड़ा था। परिवार वाले उनके डेयरी उद्योग को दोबारा शुरू करने के पक्ष में नहीं थे। पर वो डेयरी में उतारने का मन बना चुके थे। उन्होंने  एक लाख 40 हज़ार में दो भैंसें खरीदीं  और दूध का काम शुरू कर दिया। इनमें से एक भैंस सही नहीं निकली। 20 दिन के अंदर ही 70 हज़ार में लाई गई भैंस को 20 हज़ार में बेचना पड़ा, यानी सीधे सीधे 50 हज़ार रुपये का नुकसान उन्हें झेलना पड़ा।

इसके बाद उन्होंने बैंक में लोन के लिए अप्लाई किया। कई साल बैंक के चक्कर लगाने के बाद उनका लोन अप्रूव हुआ। इसके बाद भूपेंद्र ने अपने सात दोस्तों के साथ मिलकर 7 हाईटेक नाम से दूध डेयरी खोलने का फैसला किया। सबने मिलकर 15 से 20 हज़ार रुपये लगाए और लाख रुपये की लागत से गाँव में ही किराये पर जगह लेकर पूरा सेटअप चालू कर दिया। भूपेन्द्र कहते हैं कि शुरू से ही फोकस रहा कि हम कुछ ऐसा करें कि लोग शहर से गाँव में आयें। उन्हें रोज़गार की तलाश में बाहर नहीं, गाँव में ही अवसर मिले। 7 हाईटेक में अपनी भैंसों के दूध के साथ साथ-आस पास के छोटे किसानों से दूध और इसे बनने वाले प्रॉडक्ट्स जैसे छाछ, पनीर और दही खरीदने लगे। एक दिन का दूध कलेक्शन 1400 लीटर तक भी पहुंच जाता। 7 हाईटेक ग्रुप ने 2018 में कोऑपरेटिव सोसाइटी का भी गठन किया। इसके ज़रिए वो ज़रूरतमंदों लोगों को फ़ाइनेंस की सुविधा देते हैं। आज इस कोऑपरेटिव सोसाइटी का टर्नओवर ही 7 से 8 करोड़ के आसपास है।

 

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