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अनार की आधुनिक खेती कर बदली लोगों की सोच, पद्म श्री विजेता है गुजरात का यह दिव्यांग किसान!
वर्ष 2017 में पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित होने वाले लोगों के बारें तो हम सभी बखुबी जानतें हैं। उनमें विराट कोहली, संजीव कपूर, आदि बड़े-बड़े नामों से हम भली-भांति परिचित हैं। लेकिन शायद ही किसी को पता होगा कि उस पद्मश्री अवार्ड से सम्मानित होने वालों में एक नाम विकलांग किसान का भी था।
आज हम आपको उसी किसान के बारे में बताने जा रहें हैं जो पद्मश्री जैसे बड़े सम्मान से पुरस्कृत हुए हैं।
राह काँटों भरी भले ही क्यों न हो, यदि किसी इंसान में कामयाबी को हासिल करने की इच्छाशक्ति हो तो उससे बड़ी ताकत और कुछ हो ही नहीं सकती। जिंदगी की राह में हर इंसान के हिस्से बहुत सारी कठिनाइयाँ इंतजार कर रही होती है, अलग-अलग मोड़ों पर उसकी राह रोकने के लिए। परन्तु बुलंद हौसलों वाला व्यक्ति उन तमाम बाधाओं को पार करते हुए एक हीरो के रूप में उभर कर सामने आता है और इतिहास के सीने पर एक गुलाब की तरह टंगा रहता है।
“ज़िन्दगी चुनौतियों के बिना कुछ नहीं है और चुनौतियों के बिना कोई मज़ा भी नहीं आता है। जहाँ आकर लोग रुक जाते है, मैं वहां से शुरुआत करता हूँ। मुझे कभी ऐसा लगा ही नहीं कि कुछ भी ऐसा है, जो मैं कर नहीं सकता। वो कहते हैं ना कि ‘मेरी डिक्शनरी में असंभव जैसा कोई शब्द ही नहीं है,'” ये कहना है गेनाभई का, जिनके दोनों पाँव पोलियो से ग्रस्त है।
भिन्न रूप से सशक्त किसी व्यक्ति के लिए पद्मश्री का सम्मान प्राप्त करना अपने आप में ही बड़ी बात है। आज की हमारी कहानी के नायक एक ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने विकलांगता के प्रति लोगों की धारणाओं को तोड़ा है। उनका यह व्यवसाय कोई नौ से पांच वाली नौकरी नहीं है जिसमें आराम से कुर्सी पर बैठना है। उन्होंने वह रास्ता चुना है जिसमें कम लोग ही चलते हैं, श्रम की राह। गेनाभाई दरगाभाई पटेल ने कृषि को व्यवसाय के रूप में अपनाकर साबित किया है शरीर से विकलांगता भिन्न रूप से सशक्त होने का दूसरा नाम है। वे मिसाल बन कर उभरे हैं भिन्न रूप से सशक्त और आम लोगों के लिए भी।
गेनाभाई दर्गाभई पटेल (Genabhai Dargaabhai Patel) गुजरात के बनासकांठा जिले के अंतर्गत आने वाले सरकारी गोलिया गांव के निवासी हैं। गेनाभाई का दोनों पैर पोलियो ग्रस्त है। पैर पोलियो ग्रस्त होने के कारण इनके पिताजी सोचते थे कि यह खेती में उनकी मदद नहीं कर सकतें। इसलिए वह गेनाभाई की पढ़ाई पूरी करवाना चाहते थे। पढ़ाई पूरी करने के लिये गेनाभाई को बहुत ही कम उम्र में 30 किलोमीटर की दूरी पर एक हॉस्टल में डाल दिया गया। वह अपने तिनपहिया साइकिल चलाकर आसानी से स्कूल जाते थे। गेनाभाई पटेल 12वीं तक पढ़ाई करने के बाद अपने गांव वापस आ गये।
गेनाभाई अपने बहन-भाईयों में सबसे छोटे हैं। बचपन में उनके भाई खेतों में अपने पिताजी का हाथ बंटाते थे। इनके पिता को लगता था कि गेनाभाई उनकी खेती में मदद नहीं कर सकते, इसलिए वे चाहते थे कि वो अपनी पढ़ाई पूरी करें। बहुत कम उम्र में ही उनको 30 किमी दूर एक हॉस्टल में भेज दिया गया, जहाँ ये अपने तिपहिया साइकिल पर आसानी से स्कूल जा सकते थे। उन्होंने 12वीं तक पढ़ाई की। लेकिन माता-पिता अनपढ़ थे, तो उन्हें समझ नहीं आया कि गेनाभाई को आगे कहाँ और कैसे पढ़ाया जाए। तब गेनाभाई वापस अपने गाँव चल आये।
गेनाभाई खेती में अपने पिताजी की मदद नहीं कर सकते थे लेकिन फिर भी वह साथ में खेत जाया करते थे। तब उनके मन में विचार आया कि वह सिर्फ एक तरीके से अपने पिता की सहायता कर सकतें हैं। उन्होंने ने ट्रैक्टर चलाना सीख लिया। हाथ से क्लच और ब्रेक को सम्भालने लगे और बहुत ही जल्द एक अच्छे ट्रैक्टर चालक बन गयें।
गेनाभाई के पिताजी परम्परागत तरीके से खेती करतें थे। वह गेहूं, बाजरा जैसे गुजरात के पारंपरिक फसलों को उगाते थे। सिंचाई की व्यव्स्था नहीं होने के कारण बोरबेल की सहायता से सिंचाई किया जाता था। लेकिन बोरबेल की मदद से सिंचाई करने में पानी अधिक बर्बाद होता था। गेनाभाई को भी कृषि करना था। वह किसी ऐसे फसल की खोज कर रहे थे जिसे वह अपाहिज होते हुयें भी उगा सकें और एक बार बोने के बाद अधिक वक्त तक उससे उपज मिलती रहें।
गेनाभाई (Genabhai) ने शुरु में आम का पेड़ लगाने के बारें में विचार किया। इसके साथ समस्या यह है कि यदि मौसम परिवर्तित हो तो आम के फूल गिर जातें है और फिर अगले वर्ष का इंतजार करना पड़ता। यह सोच कर वह दूसरे फसलों के बारें में जानने का प्रयास करने लगे। इसके लिये उन्होनें स्थानीय कृषि विभाग से सम्पर्क किया। कृषि विश्वविद्यालय भी गयें। इसके अलावा उन्होंने सरकार के कृषि मेले में जाकर जानकारी इकट्ठी की। इससे भी नहीं हुआ तो गेनाभाई ने लगभग 3 महीने तक गुजरात, राजस्थान और महाराष्ट्र का दौरा किया। उनके जज्बे ने उन्हें कामयाबी दिला दी। गेनाभाई ने महाराष्ट्र के किसानों को अनार की खेती करतें हुयें देखा। महाराष्ट्र का मौसम भी गुजरात के जैसा ही रहता हैं। अनार में फूल सालभर उगते है और उन्हें ज्यादा देखभाल की भी जरुरत नहीं होती हैं।
गेनाभाई ने वर्ष 2004 में महाराष्ट्र (Maharastra) से अनार के 18 हजार पौधें लेकर आये। अपने भाई की मदद से अनार के पौधें को खेतों में लगाया। गेनाभाई ने बताया, “मुझे इस काम को करते देखकर गांव के लोगों को लगा कि मेरा दिमाग घूम गया है, क्यूंकि इससे पहले गांव में अनार की खेती किसी ने नहीं की थी।” लेकिन गेनाभाई का मानना है कि एक किसान की आंखे कभी धोखा नहीं खा सकती। गेनाभई के इस काम में उनके भाई और भतीजे ने काफी सहायता की।
गेनाभाई ने जो पौधा लगाया था उसमें 2 साल बाद 2007 में फूल आना शुरु हो गया। इसे देखकर दूसरे किसान भी इनकी मदद से अनार की खेती करने लगे। लेकिन गेनाभाई के लिये सबसे बड़ी चुनौती अनार को बेचने की थी क्यूंकि पूरे राज्य में अनार का बाजार कहीं नहीं था। अनार बेचने के लिये गेनाभाई ने अनार की खेती करने वाले सभी कृषकों को बनासकांठा (Banaskantha) में एकत्रित किया और ट्रकों में अनार लादकर दिल्ली (Delhi) और जयपुर (Jaipur) के बाजारों में बेचने की व्यवस्था किए। लेकिन यह उपाय ज्यादा दिन तक टिक नहीं सका। इसलिए गेनाभाई को ऐसे व्यापारी की जरुरत थी जो उनसे सीधा माल खरीद सके।
गेनाभाई ने अपनी पहली ऑर्डर के बारें में बताया कि व्यापारी को जब विश्वास होता है कि माल की प्रयाप्त मात्रा है तब ही वह फल खरीदता है। अपने फल को बेचने के लिये उन्होंनें एक योजना बनाई। उनहोंने प्रत्येक खेतों में अलग-अलग किसानों को बैठाया और एक ही खेत को व्यापारियों को अनेक बार दिखाया। वास्तव में उनके पास सिर्फ 40 खेत थे लेकिन अपनी योजना के अनुसार उनहोंने व्यापारी को 100 खेत दिखाया जिससे उन्हें विश्वास हो गया कि माल पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है।
गेनाभाई के अनार के पहले ऑर्डर की बिक्री 42 रुपये किलो के भाव पर हुईं। इसके बाद गेनाभाई ने 5 एकड़ की भूमि पर अनार की खेती की जिससे लगभग 54 हजार किलो अनार का उपज कियें। गेनाभाई ने बताया कि एक एकड़ पर किसानों को पारंपरिक खेती से 20,000 से 25,000 का आमदनी होता है लेकिन मुझें मेरी खेती से 10 लाख से अधिक का फायदा हुआ है।
गेनाभाई से प्रेरणा लेकर गांव वालों ने भी पारंपरिक खेती को छोड़कर अनार की बागबानी करने लगे। किसानो की सहायता के लिये गेनाभाई ने एक वर्कसॉप का आयोजन किया और इसमें कृषि जानकारों एवम कृषि वैज्ञानिकों को बुलाया, ताकी उनहोंने जो गलती किया वह दूसरे किसान भाई न करे।
अपने इस व्यवसाय में गेनाभाई पटेल को कई मुसीबतो का सामना भी करना पड़ा। एक वक्त ऐसा आया जब पूरे जिले में जल स्तर नीचे चले जाने के कारण जल संकट आ गया। ऐसे में फलों की सिंचाई के लिये उन्होंने ड्रिप सिंचाई का व्यवस्था किया। गेनाभई का कहना है कि उनके पास ड्रिप सिंचाई करने स्थापित करने के लिये सिर्फ 50% सब्सीडी थी। आज यह बढ़कर 80% हो गई है। सरकार अनार की खेती करने वाले किसानों को 42 हजार की सब्सीडी देती हैं जिसकी सहायता से उन्होंने ने ड्रिप सिंचाई की व्यवस्था की।
हम सभी जानते है कठिन परिश्रम का फल जरुर मिलता है। गेनाभाई को उनके मेहनत का फल मिला। उनके जिले के अनारो का सप्लाई दुबई (Dubai), श्रीलंका (Sri Lanka) और बांग्लादेश (Bangladesh) तक होता है। विदेशों में सप्लाई होने के वजह से किसानों को अच्छी आमदनी भी होती है। हमारे देश के प्रधानमंत्री मोदी जी ने दासा में एक यात्रा के दौरान गेनाभाई के नाम का जिक्र भी किया था।
वर्तमान में गेनाभाई किसानों को समस्या से निपटने के लिये सुझाव भी देते है। वे कहतें हैं कि किसानो को पारंपरिक खेती और फसल के तरीकों से कुछ अलग भी सोचना चाहिए। जैविक खाद बनाने के लिये प्रत्येक किसान भाईयों के पास 2 देशी गाय होना चाहिए। इसके अलावा वह बताते हैं कि बाजार की मांग के हिसाब से उत्पादन करेंगे तो सभी किसान भाई अपने सामान को विदेशों में भी बेच सकतें हैं। यह देश के लिये और उनके लिये भी लाभकारी होगा।
गेनाभाई दर्गाभई पटेल को उनके काबिलियत और सफलता के लिये 18 राज्य-स्तरीय सम्मान और कई राष्ट्रीय पुरस्कार भी दिया जा चुका है। 26 जनवरी 2017 को तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के द्वारा पुरस्कृत किया गया। यह गेनाभाई के लिये एक सपना जैसा था।
बहुत जल्द, गेना भाई अपने गाँव के सबसे अच्छे ट्रैक्टर चालक बन गए।
अपने खेत में गेनाभाई
उन्होंने आगे बताया, “मेरे पिताजी पारंपरिक किसान थे। वे गेंहू, बाजरा जैसी गुजरात की पारंपरिक फसल उगाया करते थे। उस समय सिंचाई की कोई व्यवस्था नहीं थी और किसान बोरवेल की मदद से सिंचाई से खेती करते थे। लेकिन इस से पानी की बहुत बर्बादी होती। और पारंपरिक खेती में किसान को पूरे साल भर काम करना पड़ता था। मुझे भी खेती करनी थी और इसलिए मैं किसी ऐसी फसल की खोज में था, जिसे मैं दिव्यांग होते हुए भी आसानी से उगा सकूँ। कुछ ऐसा, जिसे एक बार बोने के बाद, लंबे वक़्त तक उपज मिले।”
गेना भाई ने ऐसी फसलों पर शोध करना शुरू किया। शुरुआत में उन्होंने, आम के पेड़ लगाने की सोची। पर अगर मौसम में कोई बदलाव हो, तो आम के फूल गिर जाते हैं और फिर उसके लिए अगले साल तक इंतज़ार करना पड़ता। अन्य विकल्प जानने के लिए गेना भाई ने स्थानीय कृषि अफसर से संपर्क किया। उन्होंने कृषि विश्वविद्यालय का भी दौरा किया और साथ ही, सरकार द्वारा लगाये कृषि मेले से भी जानकारी इकट्ठा की। करीब तीन महीने तक उन्होंने गुजरात, राजस्थान और महाराष्ट्र के भी दौरे किये और इतनी मेहनत के बाद, आख़िरकार उन्हें कामयाबी हासिल हो ही गयी। उन्होंने महाराष्ट्र के किसानों को अनार उगाते देखा, यहाँ का मौसम गुजरात की तरह ही रहता है। अनार के फूल पूरे साल आते हैं और इसे ज़्यादा देखभाल की ज़रूरत भी नहीं होती।
साल 2004 में गेनाभई महाराष्ट्र से 18,000 छोटे पौधे लेकर आये और अपने भाईयों की मदद से इन्हें अपने खेतो में लगाया।
गेनाभाई का अनार का फार्म
“बाकी सभी किसान सोचते थे कि मेरा दिमाग फिर गया है। क्योंकि मैं अनार उगाने की सोच रहा था और यह पूरे जिले में आज तक किसी ने नहीं किया था। पर एक किसान की आँखे कभी भी धोखा नहीं खा सकती। मुझे पता था कि मेरी ज़मीन पर अनार उग सकते हैं। मेरे भाई और भतीजों ने भी मुझ पर भरोसा किया और पूरा सहयोग दिया,” गेनाभाई ने कहा।
दो साल में ही गेनाभई ने खुद को सही साबित कर दिया और साल 2007 में इनके पौधों में फल आने लगे। इनकी सफलता देखकर दूसरे किसानों ने भी अनार लगाना शुरू कर दिया। लेकिन अब इन फलों को बेचना सबसे बड़ी चुनौती थी, क्योंकि पूरे राज्य में अनार के लिए बाज़ार नहीं था। फिर गेनाभई ने अनार उगाने वाले सभी किसानों को बनासकांठा में इकट्ठा किया और यहाँ से ट्रकों में अनार लादकर, जयपुर और दिल्ली के बाज़ारों में बेचने की व्यवस्था की। हालांकि, यह तरीका ज़्यादा दिन नहीं चल पाया। उन्हें ऐसे व्यापारियों की ज़रूरत थी, जो उनकी उपज को सीधा उनसे खरीदें।
आगे उन्होंने बताया, “व्यापारी हमसे तभी फल खरीदते, जब उन्हें यह विश्वास होता कि हमारे पास पर्याप्त मात्रा है। इसलिए हमने एक योजना बनाई। हमने हर एक किसान को अलग-अलग खेतों में बैठने के लिए कहा। हमने व्यापारियों को एक ही खेत कई बार दिखाया और इस तरह अनार के 100 खेत दिखाए, जबकि असल में केवल 40 ही खेत थे। व्यापारियों को लगा कि हमारे पास काफ़ी मात्रा है और इस तरह हमें हमारा पहला ऑर्डर मिला।”
उनका पहला ऑर्डर 42 रुपये प्रति किलो के भाव से बिका। फिर उन्होंने करीब 5 एकड़ ज़मीन पर अनार की खेती की और लगभग 54,000 किलो अनार उगाये। उन्हें अपनी लागत के मुकाबले 10 लाख रूपये से अधिक का मुनाफ़ा हुआ। गेनाभाई बताते हैं,
“हर एक एकड़ पर पारंपरिक खेती से किसानों को 20,000 से 25,000 रूपये तक की कमाई होती है। पर मेरी खेती ने मुझे 10 लाख रूपये का मुनाफा दिया।”
उन्हें देख कर, बहुत से गाँववाले पारंपरिक खेती छोड़ कर बागवानी करने लगे। उन्होंने अनार की खेती पर गाँववालों के लिए वर्कशॉप का भी आयोजन किया और इसके लिए अपने यहाँ कृषि वैज्ञानिकों और जानकारों को भी बुलाया। यह वर्कशॉप ज़रूरी था, ताकि किसान वही गलतियां न दोहरायें, जो जानकारी के आभाव में गेनाभाई ने की थीं।
हालांकि, इनकी मुश्किलें अभी खत्म नहीं हुई थी। एक समय आया, जब पूरे जिले में पानी का स्तर बहुत नीचे चला गया और यहाँ जल-संकट आ पड़ा। पर गेनाभाई कहते हैं कि जो भी होता है, किसी न किसी कारण से होता है। उन्होंने इस अवसर को अनार के खेतों में ड्रिप सिंचाई की व्यवस्था स्थापित करने में इस्तेमाल किया।
गेनाभाई कहते हैं, “हमारे पास उस समय ड्रिप सिंचाई स्थापित करने के लिए 50% की सब्सिडी थी, जो अब 80% हो गई है। सरकार अनार के किसानों को 42,000 रुपये की सब्सिडी भी देती है। इसका लाभ उठाते हुए, हमने अपने खेतों में ड्रिप सिंचाई की व्यवस्था की।
अब गेनाभाई की मेहनत रंग लाने लगी है और इस जिले के अनारों का निर्यात दुबई, श्रीलंका और बांग्लादेश में होता है। इससे यहाँ के किसानों की अच्छी कमाई होती है। बनासकांठा के दीसा में अपनी एक यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने भाषण में गेनाभाई का ज़िक्र किया और उनकी उपलब्धियों की प्रशंसा भी की।
वर्तमान परिस्थितियों से किसान कैसे उबर सकते हैं, यह बताते हुए गेनाभई कहते हैं, “मेरा सुझाव है कि किसानों को पारंपरिक खेती और फसल के तरीकों से भी अलग कुछ सोचना पड़ेगा। हर किसान के पास कम से कम अपनी दो देसी गाय होनी चाहिए और उन्हें खुद जैविक खाद तैयार करना चाहिए। रासायनिक उर्वरक इस्तेमाल करना और फिर उन्हें खरीदने के लिए खर्च भी किसानों का बोझ बढ़ाता है। अगर वे बाज़ार की मांग के अनुसार अनाज या फल उगायेंगे, तो वे अपनी उपज को विदेशों में निर्यात भी कर सकते हैं। यह देश के लिए तो लाभदायक होगा ही, साथ ही साथ उनकी कमाई भी काफ़ी बढ़ेगी।”
“अगर किसान अच्छी कमाई करेंगे.. तो, हम भी अपना सीना तान कर के चल सकते हैं,” गेनाभाई ने हंसते हुए कहा।
मिल चुके हैं कई पुरस्कार
गेनाभई दर्गाभई पटेल को उनके काबिलियत और सफलता के लिये 18 राज्य-स्तरीय सम्मान और कई राष्ट्रीय पुरस्कार भी दिया जा चुका है। 26 जनवरी 2017 को तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के द्वारा पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया गया। यह गेनाभई के लिए एक सपना जैसा था।
भविष्य की योजना के बारें में गेनाभाई कहतें हैं कि भारत वह भारत बने जहां किसानो की सफलता किसी के लिये आश्चर्य की बात न हो।
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