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बेंगलुरु के वैज्ञानिक ड्रोन के सहारे उगायेंगे जंगल
हजारों एकड़ जंगल लगाने का सपना: ड्रोन से बम की तरह बरसेंगे बीज
इंडियन इंस्ट्यूट ऑफ साइंस बेंगलुरु के वैज्ञानिक प्रोफेसर केपीजे रेड्डी अब ड्रोन सीड बॉम्बिंग के ज़रिये जंगल उगायेंगे। प्रकृति से काफी लगाव रखने वाले रेड्डी तकनीक के सहारे जंगलों को बचाने और नए जंगल लाने के बारे में काम कर रहे हैं। विदेशों में हुए ड्रोन के बारे में तो आपने कई दफा सुना होगा, लेकिन भारत में ऐसा पहली बार होने जा रहा है। खत्म हो रहे पेड़ पौधों और जंगलों की स्थिति को ध्यान में रखकर रेड्डी ये सकारात्मक कदम उठा रहे हैं, जिसे ट्रायल के तौर पर अपनाया भी जा चुका है।
इंडियन इंस्ट्यूट ऑफ साइंस बेंगलुरु के वैज्ञानिक प्रोफेसर केपीजे रेड्डी एक किसान परिवार में पले बढ़े हैं। प्रकृति से काफी लगाव रखने वाले रेड्डी अब तकनीक के सहारे जंगलों को बचाने और नए जंगल लाने के बारे में काम कर रहे हैं।
पिछले महीने जून में विश्व पर्यावरण दिवस के दिन IISC बेंगलुरू के वैज्ञानिक केपीजे रेड्डी ने एयरोडायनैमिक्स डिपार्टमेंट और वन विभाग के वैज्ञानिकों के साथ मिलकर ड्रोन के सहारे पौधे बोने की योजना बनाई। ट्रायल के तौर पर उन्होंने कर्नाटक के कोलार जिले में पिनाकिनी नदी के तट को चुना।
इंडियन इंस्ट्यूट ऑफ साइंस बेंगलुरु के वैज्ञानिक प्रोफेसर केपीजे रेड्डी का प्रयोग ड्रोन सीड बॉम्बिंग अभी अपने शुरुआती दौर में है, लेकिन इस पहल से जुड़े सभी वैज्ञानिकों का लक्ष्य है, कि जितनी भी खाली और अनुपयोगी जमीनें पड़ी हैं, वहां पर पेड़-पौधे लगाकर उसे हरा-भरा कर दिया जाए। टीम के मेंबर प्रोफेसर एस एन ओमकार ने बताया, कि अभी लगभग 10,000 एकड़ में ड्रोन के सहारे बीज बोने का लक्ष्य रखा गया है और यह हर साल होता रहेगा। प्रोफेसर का कहना है कि कई क्षेत्र इतने दुर्गम हैं कि वहां पहुंचना आसान नहीं है, इसलिए ड्रोन के सहारे वहां बीज पहुंचाए जाएंगे।
एयरोप्लेन या हेलीकॉप्टर के जरिए ऐसा करने में काफी खर्च होता और टेक ऑफ-लैंडिंग में भी काफी समस्या आती है, इसलिए ड्रोन का विकल्प चुना गया।
ड्रोन से एक फायदा यह भी होगा कि पहले देख लिया जाएगा, कि कौन-कौन से इलाके बीज बोने के लिए सबसे उपयुक्त है। उसके बाद ही बीज बिखेरे जाएंगे। प्रोफेसर ओमकार ने बताया कि बीज बिखेरने के बाद हर तीन महीने उसका रिव्यू किया जाएगा, ताकि प्रगति की रिपोर्ट मिल सके। नॉर्थ बेंगलुरु में डोडाबल्लापुर के आस-पास 10,000 एकड़ जमीन खाली पड़ी है वहीं पर ये काम शुरू होगा। गुरिबिंदनौर इलाके में 200 एकड़ में एक साइंस सेंटर बन रहा है। इस साइंस सेंटर की कमेटी के जरिए पहल हो रही है।
इस पहल का नेतृत्व कर रहे डॉ रेड्डी ने बताया कि पहले एक इलाके को सैंपल के रूप में लिया गया और वहां बीज बिखेरे गए। अब वहां पर देखा जा रहा है कि क्या इस तकनीक के जरिए पेड़ लगाना मुमकिन है या नहीं। उन्होंने बताया कि यह प्रोजेक्ट तीन साल तक तक चलेगा। यह प्रोजेक्ट तो अभी बस एक शुरुआत है। इस के माध्यम से पर्यावरण से जुड़ी कई स्टडी की जाएगी। आने वाले समय में ऐसे ही ड्रोन पर काम होगा जो खुद से बीज बो सकें। प्रोफेसर रेड्डी ने बताया कि यह ट्रायल काफी सफल रहा।
ड्रोन में एक कैमरा भी लगा हुआ है, जिसके सहारे सब कुछ रिकॉर्ड किया जा रहा है। महीने दर महीने रिकॉर्ड इस डेटा का बाद में ऐनालिसिस किया जाएगा। जिससे सही तरीके से बीज बोने में मदद मिलेगी। यह पहल इस समय इसलिए शुरू की गई क्योंकि मॉनसून आने वाला है और पेड़ों को लगाने के लिए यह सबसे सही वक्त होता है। एक बार बीज जमीन पर पड़ गए तो उन्हें पानी की भी जरूरत होगी जो कि बारिश से पूरी हो जाएगी।
जमीन पर गिरने के बाद बीज बेकार न होने पाएं इसके लिए बीज को खाद और मिट्टी की गेंद में लपेटा गया है। यह सब कोलार वन विभाग की देख रेख में हुआ है। जिन बीजों को बोया जाएगा उनमें से आंवला, इमली और कई सारे स्थानीय मौसम के अनुकूल पौधे चुने गए हैं। प्रोफेसर रेड्डी कहते हैं कि इस प्रोजेक्ट में गांव के स्थानीय लोगों को शामिल किया जाएगा। क्योंकि वे पौधों की अच्छे से देखभाल कर सकते हैं।
प्रोफसर ने बताया कि यहां पहाड़ी इलाके ज्यादा हैं और वहां जाना संभव नहीं है। सिर्फ पर्वतारोही ही वहां जा सकते हैं। इसीलिए ड्रोन का विकल्प चुना गया। उन्होंने ऐसे ड्रोन विकसित किए हैं जो दस किलो तक का वजन उठा सकते हैं और एक घंटे तक लगातार हवा में उड़ सकते हैं। रेड्डी ने कहा, 'मुझे नहीं पता कि हमारा ये प्रोजेक्ट कितना सफल होगा, लेकिन मैं बहुत आशावादी हूं और उम्मीद करता हूं कि हमारा ये मिशन ये सफल हो।'