बर्थ डे खासः स्मिता पाटिल एक संवेदनशील अभिनेत्री
स्मिता पाटिल हिंदी सिनेमा की सबसे प्रतिभावान अभिनेत्रियों में से एक हैं। उन्होंने अपनी कई फिल्मों में एक से बढ़कर एक यादगार रोल किए हैं। इनकी एकदम आरंभिक फिल्मों में निशांत, मंथन और भूमिका हैं। श्याम बेनेगल ने इनकी प्रतिभा को पहचान कर बेहतरीन इस्तेमाल किया।
दर्शकों को स्मिता की अर्थ फिल्म काफी पसंद आ. थी। हालांकि यह फिल्म पूरी तरह शबाना आजमी के इर्द-गिर्द घूमती है, लेकिन जिस दमदार तरीके से स्मिता अपनी उपस्थिति दर्ज कराती हैं, वह शबाना जैसी अभिनेत्री को कड़ी टक्कर देती नजर आती हैं। इस फिल्म में उन्होंने कुछ हद तक मानसिक रोगी का अभिनय किया था। अपने पूरे हाव-भाव और आवाज से वे वैसी ही नजर आती हैं। 1981 में आई चक्र फिल्म में स्मिता का अभिनय जबर्दस्त ऊंचाइयों को छूता नजर आता है। वे झुग्गी-झुपड़ी की एक गरीब महिला के किरदार को एकदम सहज तरीके से निभातीं हैं। उन महिलाओं के रहन-सहन, बोलचाल और शैली को वे पूरी तरह से आत्मसात कर लेतीं हैं। इस फिल्म में उनके शानदार अभिनय को काफी तारीफ मिली थी। इसके लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार भी मिला था। इससे पहले भी वह भूमिका में यह पुरस्कार प्राप्त कर चुकी थीं।
स्मिता पाटिल की एक और यादगार फिल्म है- बाजार। इसमें भी वे हैदराबादी महिला के किरदार को जीवंत रूप देती हैं। स्मिता की आवाज में एक अलग तरह की कशिश है। केतन मेहता की मिर्च मसाला में भी वे महिला सशक्तीकरण के एक यादगार किरदार को निभाती हैं। अपनी इज्जत की रक्षा के लिए वे पुलिस, जमींदार के गठजोड़ के साथ ही पूरे गांव से टकराती हैं। उन्होंने अपने दमदार अभिनय से नसीरउद्दीन शाह और ओम पुरी को कड़ी टक्कर दी है। मंडी और अर्द्धसत्य में हालांकि उनका रोल छोटा था, पर उसे भी वे पूरी शिद्दत से निभातीं हैं।
स्मिता ने कई ऐसी कॉमर्शियल फिल्मों में भी काम किया, जिसमें वो अगर काम न भी करतीं तो अच्छा रहता। जैसे नमक हलाल और डांस-डांस जैसी दर्जनों फिल्में हैं।
केतन मेहता के निर्देशन में स्मिता पाटिल की फ़िल्म ‘मिर्च मसाला 1987 में ‘ प्रदर्शित हुई। इस फिल्म ने हिंदी सिनेमा के परिदृश्य को ही बदल कर रख दिया था। इसमें स्मिता पाटिल ने जबरदस्त अभिनय किया। सूबेदार बना नसीरुद्दीन शाह गांव की महिला बनी स्मिता पाटिल से जबरन संबंध बनाना चाहता है। स्मिता विरोध करती हैं। वे गांव के मिर्च पाउडर बनाने के कारखाने में शरण लेती हैं। अंत में बूढ़ा चौकीदार उसकी इज्ज्त बचाने के लिए सूबेदार को गोली मार देता है। इस पूरे घटनाक्रम में एक साधारण महिला अपनी इज्ज़त बचाने के लिए जद्दोजहद करती है, उसको स्मिता पाटिल लाजवाब ढंग से निभातीं हैं।
उन्होंने अपनी अंतिम फिल्मों में से एक वारिस में भी अच्छा काम किया है। कुल मिला कर देखा जाए तो आर्ट फिल्मों में हमें शबाना और स्मिता के बीच जबर्दस्त मुकाबला नजर आता है। इनमें से शायद अधिक फिल्में करने के कारण शबाना को भले नंबर वन कहना पड़े, पर स्मिता ज्यादा पसंद आती हैं। स्मिता को भले ही पारंपरिक हीरोइन के मानक में सुंदर कहना थोड़ा मुश्किल है, लेकिन सांवले रंग की इस नायिका में एक अलग तरह का आकर्षण था।
अर्थ में शबाना से कांटे का मुकाबला
मुझे स्मिता की अर्थ फिल्म काफी पसंद है। हालांकि ये फिल्म पूरी तरह शबाना आजमी के इर्द-गिर्द घूमती है, लेकिन जिस दमदार तरीके से स्मिता अपनी उपस्थिति दर्ज कराती हैं, वो शबाना जैसी अभिनेत्री को कड़ी टक्कर देती नजर आती हैं। इस फिल्म में उन्होंने कुछ हद तक मानसिक रोगी को अभिनय किया था। अपने पूरे हावभाव और आवाज से वो वैसी ही नजर आती हैं।
चक्र में लाजवाब अभिनय
1981 में आई चक्र फिल्म में स्मिता का अभिनय जबर्दस्त ऊंचाइयों को छूता नजर आता है। वे झुग्गी-झुपड़ी की एक गरीब महिला के किरदार को एकदम सहज तरीके से निभातीं हैं। उन महिलाओं के रहन-सहन, बोलचाल और शैली को वो पूरी तरह से आत्मसात कर लेतीं हैं। इस फिल्म में उनके शानदार अभिनय को काफी तारीफ मिली थी। इसके लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार भी मिला था। इससे पहले वो भूमिका में यह पुरस्कार प्राप्त कर चुकी थीं।
बाजार एक नया मुकाम
स्मिता पाटिल की एक और यादगार फिल्म है बाजार इसमें भी वो हैदराबादी महिला के किरदार को जीवंत रूप देती हैं। स्मिता की आवाज में एक अलग तरह की कशिश है। केतन मेहता की मिर्च मसाला में भी वो महिला सशक्तीकरण के एक यादगार किरदार को निभाती हैं। अपनी इज्जत की रक्षा के लिए वो पुलिस, जमींदार के गठजोड़ के साथ ही पूरे गांव से टकराती हैं। उन्होंने अपने दमदार अभिनय से नसीरउद्दीन शाह और ओम पुरी को कड़ी टक्कर दी है। मंडी और अर्द्धसत्य में हालांकि उनका रोल छोटा था, पर उसे भी वो पूरी शिद्दत से निभातीं हैं। स्मिता ने कई ऐसी कॉमर्शियल फिल्मों में भी काम किया, जिसमें वो अगर काम ना भी करती तो अच्छा रहता। जैसे नमकहलाल और डांस-डांस जैसी दर्जनों फिल्में हैं।
अंतिम फिल्म वारिस
उन्होंने अपनी अंतिम फिल्मों में से एक वारिस में भी अच्छा काम किया है। कुल मिला कर देखा जाए तो आर्ट फिल्मों में हमें शबाना और स्मिता के बीच जबर्दस्त मुकाबला नजर आता है। इनमें से शायद अधिक फिल्में करने के कारण शबाना को भले नंबर वन कहना पड़े पर मुझे व्यक्तिगत रूप से स्मिता ज्यादा पसंद आती हैं। स्मिता को भले ही पारंपरिक हीरोइन के मानक में सुंदर कहना थोड़ा मुश्किल है, लेकिन सांवले रंग की इस नायिका में एक अलग तरह का आकर्षण था।
सिर्फ 36 साल का सफरनामा
स्मिता पाटिल का जन्म 17 अक्तूबर 1955 को पुणे (महाराष्ट्र) के राजनीतिज्ञ शिवाजीराव गिरधर पाटिल और सामाजिक कार्यकर्ता विद्या ताई पाटिल के यहाँ कुनबी मराठा परिवार में हुआ था।उन्होंने पुणे के रेणुका स्वरुप मेमोरियल हाई स्कूल से पढाई पूरी की। उन्होंने 1970 के दशक में वो मुंबई दूरदर्शन पर बतौर न्यूज़रीडर के रूप में काम करती थी। वो एक अच्छी फोटोग्राफर थी। स्मिता पाटिल पुणे के फ़िल्म और टेलीविज़न इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंडिया की भी छात्रा रह चुकी थी। उनकी ज्यादातर फिल्मो में वे एक मजबूत महिला की भूमिका में नजर आती हैं । इस तरह की उनकी भूमिका उन्हें फ़िल्म जगत में एक अलग ही पहचान दी।एक अभिनेत्री के अलावा भी वो सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में काम करती थी और महिला से जुड़े मुद्दे उठाती थी। उन्होंने अभिनेता राज बब्बर से शादी की थी। सबसे अफसोस इस बात है कि इतनी समर्थ अभिनेत्री हमें बहुत जल्दी छोड़ (सिर्फ 36 वर्ष की उम्र में) कर चली गई। उनके बेटे के जन्म के समय कुछ तकलीफों के कारण 13 दिसंबर 1986 को उनका निधन हो गया। उनकी कमी काफी खलती है। उनके स्तर की आज एक भी अभिनेत्री नजर नहीं आती है।
स्मिता पाटिल को मिले हुए पुरस्कार
• राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार (1977, 1980)
• फिल्मफेयर पुरस्कार (1978, 1981,1982)
• पद्म श्री पुरस्कार (1985)