- मुख्य /
- समाचार /
- खेत खलिहान
फसल चक्र बदलकर पानी बचाने की नायाब पहल, पानी भी बच रहा है और विविधीकरण से किसानों की आय भी बढ़ी
सरकार इसके लिए राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के फसल विविधीकरण योजना के तहत वर्ष 2014-2015 से प्रमुख धान उत्पादक 11 जिलों को केंद्र में रखकर धान की जगह अपेक्षाकृत कम पानी लेने वाली लाभकारी फसलें लेने के लिए जागरूकता कार्यक्रम चला रही है. पिछले पांच साल में इसके नतीजे भी अच्छे रहे हैं.
पानी का सर्वाधिक 70-80 फीसदी उपयोग खेती में होता है. कहा भी गया है कि खेती पानी को छोड़ हर चीज की प्रतीक्षा कर सकती है. मसलन फसल को उसकी जरूरत के अनुसार पानी चाहिए ही चाहिए. पानी की इसी अहमियत के नाते कहा गया है, "का वर्षा जब कृषि सुखाने." चूंकि खेती में पानी की सर्वाधिक जरूरत होती है. लिहाजा इसी क्षेत्र में पानी बचाने की सबसे अधिक गुंजाइश भी है. खासकर अधिक पानी चाहने वाली धान जैसी फसलों की जगह कम पानी और अधिक लाभ वाली फसलें लेकर. फसल विविधीकरण इसका सबसे प्रभावी तरीका है. अधिक पानी चाहने वाली फसलों की जगह कम पानी में होने वाली फसलों की प्रतिस्थापना (रीप्लेसमेंट) के जरिए.
सरकार इसके लिए राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के फसल विविधीकरण योजना के तहत वर्ष 2014-2015 से प्रमुख धान उत्पादक 11 जिलों को केंद्र में रखकर धान की जगह अपेक्षाकृत कम पानी लेने वाली लाभकारी फसलें लेने के लिए जागरूकता कार्यक्रम चला रही है. पिछले पांच साल में इसके नतीजे भी अच्छे रहे हैं. संबंधित जिलों के 90 हजार हेक्टेयर रकबे में किसानों ने धान की जगह उड़द, मूंग, तिल, बाजरा, मूंगफली, सोयाबीन और सब्जियों की खेती से प्रतिस्थापित (रिप्लेस) किया.
इनमें से अधिकांश फसलें दलहन संवर्ग की हैं. अपने नाइट्रोजन फिक्सेशन गुण के कारण ये भूमि के लिए संजीवनी हैं. साथ ही आम भारतीय के लिए प्रोटीन का स्रोत भी. इस तरह ये जन एवं जमीन दोनों की सेहत के लिए भी मुफीद. उड़द और मूंग जैसी फसलें तो कम समय में हो जाती हैं. इस तरह इनके बाद किसान बाजार की मांग के अनुसार तीसरी फसल भी ले सकते हैं. इसी तरह अपने पौष्टिकता के लिए चमत्कारिक माना जाने वाला बाजरा एक मात्र ऐसी फसल है जिसका परागण 45 डिग्री सेल्सियस तापमान पर भी हो जाता है. धान की तुलना में पानी तो इन सभी फसलों में कम लगता है.
मालूम हो कि जल की महत्ता को लेकर कई स्लोगन्स प्रचलित हैं. मसलन "जल ही जीवन है", "जल है तो कल है". "जल शांति है". "जल न्याय है".
घट रहा बारिश का औसत
हाल के वर्षों में खासकर पिछले तीन दशकों के दौरान मौसम अप्रत्याशित हुआ है. औसत बारिश घटने के साथ बारिश की समयावधि भी घटी है. कम समय में अधिक बारिश होना और इसके बाद सूखे का लंबा दौर आम है. एक अध्ययन के अनुसार उप्र के बुंदेलखंड क्षेत्र में पिछले 80 वर्षों के दौरान औसत बारिश में करीब 320 मिलिमीटर की कमी आई है.
कम बारिश की वजह से भारत सबसे अधिक संकट में
पानी की कमी के कारण दुनिया के जिन आठ देशों में आने वाले वर्षों में कृषि उत्पादन में गिरावट आनी है उसमें भारत सर्वोपरि है. भारत में यह कमी करीब 29 फीसद की होगी. मैक्सिको में 26, ऑस्ट्रेलिया में 16, अमेरिका में 8, अर्जेन्टीना में 2, दक्षिण पूर्व के देशों में 18 और रूस में 6 फीसद कृषि उत्पादन घटने का अनुमान है. अगर भारत के संदर्भ में देखें तो कई फसलों, फलों और सब्जियों के उत्पादन में अग्रणी होने की वजह से उत्तर प्रदेश पर इसका सबसे अधिक असर पड़ सकता है.
जल संरक्षण के लिए योगी सरकार के प्रयास
बारिश के घटते औसत, कम समय में अधिक पानी, भूगर्भ जल के स्तर में लगातार कमी के मद्देजर योगी सरकार के लिए जल संरक्षण प्राथमिकता भी है. इसके कई योजनाएं चल रहीं हैं. इसमें बहुउद्देशीय तालाब, बुंदेलखंड और विंध्य क्षेत्र को केंद्र में रखकर खेत-तालाब योजना, अमृत सरोवर,अपेक्षाकृत सिंचाई की दक्ष विधाओं ड्रिप एवं स्प्रिंकलर को प्रोत्साहन आदि प्रमुख हैं. नहरों और नलकूपों को इन्हीं विधाओं से जोड़ने की प्रक्रिया प्रस्तवित है.साथ ही इन योजनाओं के प्रति जागरूकता कार्यक्रम भी समय-समय पर चल रहे हैं. मसलन भूगर्भ जल दिवस, भूगर्भ जल सप्ताह, भूगर्भ जल पखवाड़ा आदि. इन योजनाओं एवं जागरूकता कार्यक्रमों के पीछे मकसद यह है कि लोग खासकर बच्चे, संस्थाएं और किसान जल संरक्षण के प्रति जागरूक हों.