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पीयूष को प्राकृतिक खेती से मिली प्रगति की राह

पुरानी कहावत है कि धीरे चलो और सुरक्षित पहुंचो। यह कहावत प्राकृतिक खेती करने वाले किसानों पर पूरी तरह लागू होती है, क्योंकि इस विधि में आरम्भिक वर्षों में उत्पादन कम होने से लाभ ज़रूर कम मिलता है,लेकिन लागत खर्च कम होने से उपलब्ध उत्पादन भी संतुष्टि दे जाता है और धीरे -धीरे उत्पादन के साथ -साथ लाभ भी बढ़ता जाता है। खरगोन जिले की कसरावद तहसील के ग्राम कसरावद बुजुर्ग के प्राकृतिक कृषक श्री पीयूष पिता मंसाराम पाटीदार ने मात्र दो साल में उद्यानिकी अन्य फसलों से अच्छा मुनाफा लिया है और उन्होंने प्रगति की राह पकड़ ली है।

वाणिज्य स्नातकोत्तर श्री पीयूष पाटीदार (35 ) ने कृषक जगत को बताया कि पहले वे रासायनिक और प्राकृतिक की मिश्रित खेती करते थे, लेकिन पिछले दो वर्षों से पूर्णतः प्राकृतिक खेती कर रहे हैं। प्राकृतिक खेती के तहत कपास के अलावा डॉलर चना ,पपीता, धनिया ,भिंडी, गिलकी आदि की उपज लेते हैं। फसलों में प्राकृतिक गोबर खाद , केंचुआ खाद और अन्य जीवामृत, घन जीव अमृत ,नीमास्त्र , ब्रह्मास्त्र ,गोमूत्र , छाछ,वेस्ट डी कम्पोजर आदि का प्रयोग करते हैं। यह सब स्वयं तैयार करते हैं।अग्निहोत्र भी करते हैं। रासायनिक चीजों का बिलकुल भी इस्तेमाल नहीं करते हैं।

गत वर्ष अप्रैल में सवा बीघा में पपीता की ताइवान किस्म के 900 पौधे लगाए थे, लेकिन 400 पौधे जीवित नहीं रहे। शेष 500 पौधों से 2 लाख 65 हज़ार के पपीते बेचे। अंतरवर्तीय फसल में धनिया 60 हज़ार का बिका। इसी तरह आधे बीघे में दिसंबर में लगाई भिंडी से 53 हज़ार की फसल मिली , जबकि बीज और मजदूरी का खर्च 3 हज़ार घटाने पर 50 हज़ार का शुद्ध लाभ हुआ। 20 हज़ार की गिलकी भी बेच दी।मेथी 38 हज़ार की बेची। श्री पाटीदार ने वर्ष 2022 -23 में 2 -2बीघा में कपास और डॉलर चना लगाया था। कपास का 13 क्विंटल उत्पादन मिला, जिसके 95 हज़ार प्राप्त हुए। डॉलर चना का 9 क्विंटल उत्पादन मिला ,जिसके 90 हज़ार रु प्राप्त हुए। इन विभिन्न फसलों से कुल 6 लाख 15 हज़ार रु प्राप्त हुए। इनमें से कुल लागत खर्च 1 लाख 43 हज़ार आया और शुद्ध मुनाफा 4 लाख 72 हज़ार प्राप्त हुआ।

श्री पाटीदार को कृषि / उद्यानिकी विभाग और आत्मा के अधिकारियों /कर्मचारियों का यथा समय मार्गदर्शान मिलता रहता है। आत्मा के समूह दक्षता संवर्धन कार्यक्रम के तहत आसपास के किसानों को प्राकृतिक खेती के लिए प्रेरित करने के लिए निशुल्क सलाह और प्रशिक्षण भी देते रहते हैं। मात्र दो साल की प्राकृतिक खेती के उत्पादन और मुनाफे से वे संतुष्ट हैं। अब वे प्रगति की राह पर निकल पड़े हैं। उन्हें विश्वास है कि धीरे-धीरे वे बेहतर उत्पादन करकेअधिक मुनाफे का मुकाम भी हासिल कर लेंगे।