बेटे की शिक्षा ने बदल दी गरीब किसान की ज़िंदगी
"के रघुनाथ रेड्डी आंध्र प्रदेश के कुरनूल जिले में स्थित एक गांव पेरेमुला में पैदा हुए। रायलसीमा का इलाका, जहां रघुनाथ के पिता खेती का काम करते थे, वो देश के सबसे सूखे इलाकों में से एक है। उन्होंने भी इलाके के अनेक किसानों की तरह खेती के काम में हुए नुकसान को झेला है, जो कि स्थिति से सामंजस्य न बिठा पाने के कारण या तो खेती छोड़ रहे थे या आत्महत्या कर रहे थे।"
"बेहतर ज़िंदगी जीने के लिए लड़ना नहीं, पढ़ना जरुरी है... "
"हम जिन परिस्थितियों में रहते थे, उनके बावजूद स्कूल से कभी समझौता नहीं किया। आर्थिक दिक्कते थीं, लेकिन पिताजी ने कभी भी शिक्षा को हमारी ज़िंदगी में विकल्प के तौर पर नहीं लिया। बल्कि उनके हिसाब से शिक्षा हमारे लिए बेहद ज़रूरी चीज़ थी: रघुनाथ"
पेरेमुला का सबसे करीबी स्कूल गोवर्द्धनगिरी में है, जो कि पेरेमुला से पांच किलोमीटर दूर एक सरकारी स्कूल है। रघुनाथ के पिता हमेशा से रघुनाथ की शिक्षा को लेकर गंभीर थे। रघुनाथ अपनी तीन बहनों के साथ पैदल स्कूल जाते थे। 23 वर्षीय रघुनाथ बताते हैं, "हम जिन परिस्थितियों में रहते थे, उनके बावजूद स्कूल से कभी समझौता नहीं किया। आर्थिक दिक्कते थीं, लेकिन पिताजी ने कभी भी शिक्षा को हमारी ज़िंदगी में विकल्प के तौर पर नहीं लिया। बल्कि उनके हिसाब से शिक्षा हमारे लिए बेहद ज़रूरी चीज़ थी।"
रघुनाथ बताते हैं, कि हम भले ही दिन में भोजन एक से दो बार ही कर पाते थे, लेकिन पढ़ाई पूरी करते थे। रघुनाथ हमेशा से इस बात को महसूस करते थे, कि शिक्षा ही एक मात्र वो विकल्प है जो उन्हें उनकी परिस्थितियों से बाहर निकलने में मदद करेगा और अपनी इसी सोच के चलते उन्हें शिक्षा को कभी हल्के में नहीं लिया। रघुनाथ की पढ़ाई सही तरह से हो पाये, इसलिए छ: साल की कम उम्र में उन्हें कुरनूल में किसी रिश्तेदार के यहां रहने के लिए भेज दिया गया, जहां रहते हुए रघुनाथ ने वहां के अच्छे स्कूल रवींद्र विद्या निकेतन में अपनी आगे की पढ़ाई की।
"मैंने किताबों को अपनी ज़िंदगी में हमेशा सबसे पहले रखा। पूरी इमानदारी और लगन से पढ़ता रहा, जिसके चलते कक्षा एक से लेकर दस तक हमेशा क्लास में अव्वल रहा: रघुनाथ"
रघुनाथ ने दसवीं के बोर्ड परीक्षाओं में 94.67 प्रतिशत अंक प्राप्त किये और जिले के अव्वल बच्चों की लिस्ट में स्थान पाया। रघुनाथ एक होनहार विद्यार्थी थे, लेकिन पिता की गरीबी ने शिक्षा में उनके स्थान को परिवार में थोड़ा फीका कर दिया। उनके पिता हमेशा उनकी आगे की पढ़ाई को लेकर चिंतित रहते थे। पिता अपने बेटे को उसकी किताबों से दूर नहीं होने देना चाहते थे। स्कूली शिक्षा खत्म होने के बाद पिता के सामने एक बड़ी चुनौती थी, रघुनाथ की आगे की पढ़ाई कैसे हो? कॉलेज फीस बहुत ज्यादा थी। इसी दौरान सरकारी सब्सिडी उनकी सहायता के लिए आगे आई, और रघुनाथ ने राजीव गांधी यूनीवर्सिटी ऑफ नॉलेज टेक्नोलॉजीज, आईआईआईटी – आरके वैली, इडुपुलापाया में नि:शुल्क बीटेक सीट के लिए सफलता पाई।
"आईआईआईटी के अपने समय के दौरान रघुनाथ राष्ट्रीय सेवा योजना (एनएसएस) के भी एक सक्रिय सदस्य रहे हैं। उन्होंने हेल्पिंग हेंड्स अॉर्गेनाइजेशन के एक कोर कमिटी सदस्य के रूप में भी कार्य किया, जो कि एक स्थानीय कॉलेज समूह था और ज़रूरतमंदों के लिए फंड इकट्ठा करता था।"
एक ओर रघुनाथ ने आईआईआईटी में शानदार प्रदर्शन किया, वहीं दूसरी ओर कैंपस प्रदर्शन ने उसके विकास में सहायता की। 2011 में एक ऐसा साइंस कैंप लगा, जिसने उनकी ज़िंदगी में बड़ा परिवर्तन किया। उस साइंस कैंप के बारे में बात करते हुए रघुनाथ कहते हैं, "मेरे इंटरमीडिएट पाठ्यक्रम के दूसरे वर्ष के दौरान मैं मानव संसाधन मंत्रालय और विज्ञान तकनीकी विभाग द्वारा आयोजित इंस्पायर साइंस कैंप के लिए चुना गया था, जिसके अंतर्गत मैं देश के कई बड़े वैज्ञानिकों और अध्येताओं से मिला और मेरा सामना उन चीज़ों से हुआ जो दुनिया में चल तो रही थीं, लेकिन आमतौर पर लोगों की समझ से परे थीं। वैश्विक तौर पर मैं कई नये बदलावों में अपना योगदान देना चाहता था। समाज से जो पाया उसे वापिस लौटाना चाहता था।"
आईआईआईटी के अपने समय के दौरान रघुनाथ राष्ट्रीय सेवा योजना (एनएसएस) के भी एक सक्रिय सदस्य रहे हैं। उन्होंने हेल्पिंग हेंड्स अॉर्गेनाइजेशन के एक कोर कमिटी सदस्य के रूप में भी कार्य किया, जो कि एक स्थानीय कॉलेज समूह था और ज़रूरतमंदों के लिए फंड इकट्ठा करता था। इस कमिटी के सदस्य के तौर पर रघुनाथ ने कैंसर सर्जरी, आंखों के अॉपरेशन, कान की सर्जरी के लिए कई तरह के फंड इकट्ठे किये। इन फंड्स को इकट्ठा करने के लिए स्थानीय स्टोर्स और कक्षाओं में दान पेटियां रखी गईं थी। रघुनाथ कहते हैं, "हमने लोगों को स्वास्थ्य मुद्दों के बारे में जागरुक किया। रोगियों के लिए हर माह 50, 000 से 1,00,000 रुपये भी इकट्ठे किये।"
इसके बाद रघुनाथ ने यूनीटेक इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, न्यूजीलैंड की अकेडेमिक सहयोग में टीसीएस iON से कंस्ट्रक्शन प्रोजेक्ट मैनेजमेंट में स्नातकोत्तर किया। बंगलुरू में अपने कोर्स के दौरान रघुनाथ ने स्वयंसेवकों की अदला-बदली और हुनर विकास कार्यक्रमों के जरिए युवाओं को सशक्त बनाने में मदद करने वाले एक अंतर्राष्ट्रीय एनजीओ से जुड़ गए। उन्होंने संगठन में एक टीम लीडर के रूप में काम किया, जहां उनकी भूमिका विदेश जाने और दुनिया भर में कंपनियों और एनजीओ के लिए काम करने के लिए छात्रों का चयन और प्रशिक्षण देने की थी।
"बहुत सारे लोग मेरे इस निर्णय से सहमत नहीं थे। वे चाहते थे, कि मैं निर्माण उद्योग से जुड़ूं, क्योंकि वहां आर्थिक मजबूती है, लेकिन मैं शिक्षा के क्षेत्र में काम करना चाहता था: रघुनाथ"
नवंबर 2011 में एक बड़े अवसर ने रघुनाथ के दरवाजे पर दस्तक दी। रघुनाथ संस्कृति और शिक्षा का अंतर्राष्ट्रीय केंद्र और जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कंवेंशन द्वारा बंगलुरू के लिए क्लाइमेट काउंसलर के तौर पर चुने गये। उनका काम बंगलुरू से 25 युवा लोगों की टीम बनाना और उसका नेतृत्व करना, साथ ही वैश्विक जलवायु परिवर्तन परिदृश्य के बारे में उन्हें प्रशिक्षण देना था। रघुनाथ कहते हैं, "हमें यूएन और नासा द्वारा अध्ययन सामग्री प्रदान की गई, जिसकी मदद से हमारा काम ग्रीन इनिशियेटिव को बढ़ावा देना और परिवेशी निरंतरता व जलवायु परिवर्तन के बारे में संवाद शुरू करना था। हमने सफाई अभियान, गतिविधियां, वर्कशॉप्स आयोजित किये।"
उन्हीं दिनों रघुनाथ और उनकी टीम गांव के एक स्कूल में गये जहां उन्होंने पर्यावरण के उन गंभीर विषयों पर बात की, जो आज की आबादी को भयभीत कर रहे हैं। रघुनाथ का काम उसी तरह चलता रहा और जून 2016 में रघुनाथ विशेष सेवाओं पर एक अधिकारी के रूप में तकनीकी शिक्षा और प्रशिक्षण के आंध्र प्रदेश राज्य बोर्ड में भर्ती हो गये। कई लोग रघुनाथ के इस फैसले से खुश नहीं हुए। लेकिन रघुनाथ शिक्षा के क्षेत्र में बहुत कुछ करना चाहते थे, इसलिए वे तकनीकी शिक्षा और प्रशिक्षण के क्षेत्र में आ गये। कई लोग चाहते थे, कि रघुनाथ निर्माण उद्योग से जुड़ें, क्योंकि वहां आर्थिक मजबूती है। लेकिन रघुनाथ को पैसे और शिक्षा दोनों के महत्व में तालमेल बिठाना अच्छे से आता है।
"रघुनाथ ने जागृति यात्रा 2016 शुरू की, जहां दुनिया भर से 480 उदीयमान उद्यमियों ने भारत की सामाजिक वास्तविकता को बेहतर ढंग से समझने और देश में सामाजिक उद्यमिता को बढ़ावा देने में सहायता देने के लिए 15 दिनों में 8,000 किमी की एक साहसिक ट्रेन यात्रा की।"
अपने इन कामों के साथ-साथ रघुनाथ ने जागृति यात्रा 2016 भी शुरू की, जहां दुनियाभर से 480 उदीयमान उद्यमियों ने भारत की सामाजिक वास्तविकता को बेहतर ढंग से समझने और देश में सामाजिक उद्यमिता को बढ़ावा देने में सहायता देने के लिए 15 दिनों में 8,000 किमी की एक साहसिक ट्रेन यात्रा की। रघुनाथ का मानना है, कि "सीखना ही आगे बढ़ने का एकमात्र रास्ता है। मैं आज जहां हूं, उसके पीछे की सबसे बड़ी वजह शिक्षा है, जिसका श्रेय मैं अपने पिता को देता हूं, जिन्होंने अनेक बाधाओं का सामना करते हुए मुझे इस काबिल बनाया।
आशा है इनकी कहानी पढ़कर आपको जरूर प्रेरणा मिली होगी।
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