संघर्ष भरी है दीपिका कुमारी की ओलंपियन बनने की कहानी, ऑटो ड्राइवर की जिद ने बनाया दुनिया की नंबर वन तीरंदाज

कामयाबी उम्र के सीमा की मोहताज नहीं होती। सफलता केवल लक्ष्य को हासिल करने के प्रति जुनून और जज्बा देखता है। इन्सान अपने हुनर, जुनून और लगन से विपरित परिस्थितियों को पराजित कर सफलता हासिल कर सकता है। सफलता प्राप्त करने की राह सरल नहीं होती है, लेकिन यदि कोई चाहे तो कठिन मेहनत और मुश्किलों का सामना करतें हुयें भी राह में आनेवाले हर बाधा को पार कर सफलता हासिल कर सकता है।
एक रोज वह अपनी माँ के साथ बाजार जा रही थी। रास्ते में पेड़ पर लटके आम देख कर उसका मन मचल उठा। माँ ने लाख समझाया पर वह जिद्द पर अड़ी रही। माँ ने समझाया आम पेड़ की ऊँचाई पर है इसलिए पेड़ पर नहीं चढ़े। तभी उसने सड़क के किनारे पड़े एक पत्थर उठा कर आम पर निशाना लगाया लगाया और फिर क्या था, पलक झपकते ही आम नीचे आ गिरा। उस दिन लड़की की माँ ने उसके लक्ष्य पर निशाना साधने की प्रतिभा को पहचाना। उस दिन के बाद लगातार अपने लक्ष्य पर निशाना साधती वह लड़की आज दुनिया की धूरंधर तीरंदाजों में से एक है। आज सारा देश उसकी ओर की निगाह से देखता है कि तीरंदाजी में वह अपने देश का नाम रौशन करेगी।
दीपिका कुमारी महतो भारतीय महिला तीरंदाज हैं। बिल्कुल निचले पायदान से निशानेबाजी के खेल में शुरुआत करने वाली दीपिका आज अंतरराष्ट्रीय स्तर की शीर्ष खिलाड़ियों में से एक हैं। वे वर्ष 2012 से अंतरराष्ट्रीय रैंकिंग में हैं। विश्वस्तरीय प्रतिस्पर्धाओं में 10 स्वर्ण समेत वे 37 से ज्यादा मेडल जीत चुकी हैं। हाल में उन्होंने तीरंदाजी विश्वकप प्रतियोगिता में तीन स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रच दिया।
दीपिका कुमारी (Dipika Kumari) का जन्म 13 जुन 1994 को रांची (Ranchi) से लगभग 15 किलोमीटर दूर रातु चेटी गांव में हुआ। उनके पिता का नाम शिवनारायण महतो है तथा वह एक रिक्शा चालक है। दीपिका के मां का नाम गीता देवी है तथा वह नर्स का कार्य करती है। अपने तीरंदाजी के सपने को पूरा करने के लिये उन्हें कई बार अपने पिता से फटकार भी लगती थी। उनके पिता चाहते थे कि दीपिका पढ़ लिखकर एक बड़ी अफसर बने। दीपिका अपने धुन की पक्की थी। वह पढ़ाई के साथ-साथ बांस से बने तीर धनुष के साथ तीरंदाजी करनें का भी अभ्यास करती थी।
एक बार की बात है, वह अपनी मां के साथ बाजार जा रही थी। रास्ते में पेड़ पर लटके आम पर दीपिका की नज़र पड़ी। मां ने उन्हें कई बार समझाया कि पेड़ की ऊंचाई अधिक है इसलिए पेड़ पर ना चढ़े। तभी उसने सड़क के किनारे से एक पत्थर उठाकर आम पर निशाना लगाया और पलक झपकते ही आम पेड़ से टुट कर नीचे आ गिरा। उस दिन दीपिका की मां ने अपनी बेटी के अंदर की इस प्रतिभा को पहचाना। उस दिन के बाद से लागतार दीपिका ने लक्ष्य पर निशाना साधने का अभ्यास करने लगी।
दीपिका के जीवन से जुड़ी कई प्रेरणादायक घटनाएं है। एक बार की बात है दीपिका ने अपने पिता से तीर-धनुष खरीदने के लिये कहा तो उनके पिता ने यह कहकर मना कर दिया कि फालतू कामों में ध्यान न देकर पढ़ाई में मन लगाये और कुछ बड़ा बने। परंतु बाद में वे अपनी बेटी के लिये तीर-धनुष खरीदने के लिये बाजार की ओर चले गए। लेकिन लाखों का मूल्य जानकार वह वापास आ गये और आकर उन्होंने दीपिका से अपनी मजबूरी बता दिया। उसके बाद दीपिका ने अपने गरीबी से प्रेरित होकर बांस से बने तीर-धनुष से कोशिश करने में जुट गईं।
दीपिका की मां ने बताया कि जब भी अवसर मिलता वह पेड़ पर लटके फलों पर निशाना लगाती और अपने प्रैक्टिस में और अधिक कुशलता लाती। आम के सीजन में प्रैक्टिस बढ जाती थी। दीपिका के दोस्त जिस पर निशाना लगाने को कहते उस पर दीपिका निशाना साध कर उसे नीची गिरा देती।
कुछ वर्ष पहले की बात है जब लोहारदगा में तीरंदाजी की प्रतियोगिता हुई तो दीपिका ने उस प्रतियोगिता में जाने की जिद कर दी। बेटी की जिद से थककर उनके पिता ने लोहरदगा जाने के लिये 10 रुपये दिये। दीपिका ने उस तीरंदाजी की प्रतियोगिता में हिस्सा लिया और पहला इनाम भी अपने नाम दर्ज किया। उसके बाद से दीपिका का इनाम जितने का सिलसिला जारी रहा।
दीपिका को तीरंदाजी में पहला मौका 2005 में मिला, जब उन्होंने पहली बार अर्जुन आर्चरी अकादमी में प्रशिक्षण लेना शुरू किया। यह अकादमी झारखंड के मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा की पत्नी मीरा ने खरसावां में शुरू की थी। तीरंदाजी में उनके पेशेवर करियर की शुरुआत 2006 में हुई, जब उन्होंने टाटा तीरंदाजी अकादमी में दाखिला लिया।
2006 में मैरीदा, मैक्सिको में आयोजित वर्ल्ड चैम्पियनशिप में कम्पाउंड एकल प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक हासिल करने वाली वह दूसरी भारतीय महिला बनी। वर्ष 2010 में हुए राष्ट्रमंडल खेलों में वह धूमकेतु की तरह चमकी और न सिर्फ व्यक्तिगत स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीती बल्कि महिला रिकर्व टीम को भी स्वर्ण पदक दिलाया। अर्जुन अवार्ड प्राप्त करने वाली दीपिका ने 2011 से 2013 तक लगातार तीन वर्ल्ड कप में रजत पदक अपने नाम किया।
लोहरदगा से शुरु किये इस सफर में दीपिका ने देश और विदेशों में कई कामयाबी हासिल की। वर्ष 2006 में मैरिदा, मैक्सिको में आयोजित वर्ल्ड चैम्पियनशिप में कंपाउंड एकल प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक पाने वाली दूसरी भारतीय महिला बनी। वर्ष 2010 मे हुयें राष्ट्रमंडल खेलों में दीपिका धूमकेतू की तरह चमकी और व्यक्तिगत स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीतने के साथ-साथ महिला रिकर्व टीम को भी स्वर्ण पदक दिलाया। दीपिका ने 2011 से 2013 तक लगातार तीन वर्ल्ड कप में रजत पदक हासिल किया है। दीपिका को वर्ष 2016 मे देश के तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने भारत देश के चौथे सर्वश्रेष्ठ नागरिक सम्मान से सम्मानित किया है। इसके साथ दीपिका को अर्जुन पुरस्कार से भी नवाजा जा चुका है।
दीपिका तीरंदाजी में वर्ल्ड चैंपियनशिप की विजेता रहीं हैं और कॉमनवेल्थ गेम में स्वर्ण पदक हासिल किया है। दीपिका ने अपने हुनर और प्रतिभा के बल पर कई झंडे गाड़े हैं।
सफलता उम्र की सीमा नहीं देखता, ये तो बस लक्ष्य के प्रति जुनून देखता है। 13 वर्ष की आयु से देश के लिए तीरंदाजी करने का सपना देखने वाली दीपिका कुमारी ने अपने हुनर और जज्बे से हर विपरित परिस्थिति को मात देकर कामयाबी हासिल की। खुद पह भरोसा और लक्ष्य के प्रति लगन से उन्होंने जो इतिहास लिखा है वह हर व्यक्ति के लिए प्रेरणा का स्त्रोत है। दीपिका की कामयाबी गवाह है कि सफलता की राह आसान नहीं होती पर परिश्रम करने वाला कठिनाईयों को झुका देता है।
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