Nadaprabhu Kempegowda: कौन थे बैंगलुरू के फाउंडर नादप्रभु केम्पेगौड़ा जिनकी मूर्ति ने बनाया है वर्ल्ड रिकॉर्ड

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु के संस्थापक नादप्रभु केम्पेगौड़ा की 108 फीट की प्रतिमा (Statue Of Prosperity) का अनावरण करेंगे। 98 टन ब्रांज और 120 टन स्टील से मिलकर बने इस प्रतिमा को स्टैचू ऑफ प्रोसपेरिटी के नाम से जाना जाएगा। इस प्रतिमा की सबसे खास बात यह है कि वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड्स द्वारा इसे किसी शहर के फाउंडर की पहली और सबसे उंची कास्य प्रतिमा का खिताब दिया गया है। प्रसिद्ध मूर्तिकार और पद्म भूषण से सम्मानित राम वनजी सुतार ने डिजाइन किया है। कांग्रेस ने केम्पेगौड़ा की प्रतिमा पर सवाल उठाएं हैं। पांच महीने बाद कर्नाटक में विधानसभा चुनाव भी होने वाले हैं। ऐसे में ये मुद्दा बड़ा हो सकता है।
कौन थे कैम्पोगौड़ा?
नादप्रभु केम्पेगौड़ा को विजयनगर साम्राज्य के मुखिया के रूप में जाना जाता है। कैम्पेगौड़ा को 16वीं शताब्दी में बैंगलुरू के फाउंडर के रूप में भी जाना जाता है। इतिहास के पन्ने पलटकर देखें तो हम पाएंगे कि उन्हें अपने समय के सबसे प्रसिद्ध और शिक्षित शासक के रूप में जाना जाता है। सूत्रों के अनुसार मोरासु गौड़ा वंश के वंशज कैम्पेगौड़ा ने बचपन से ही लीडरशिप क्वालिटी का प्रदर्शन किया जब वे ऐवरुकंदपुरा (ऐगोंडापुरा), हेसरघट्टा के पास एक गांव के एक गुरुकुल में पढ़ा करते थे। वे अपने पिता के बाद 1513 में मुखिया बने।नादप्रभु केंपेगोड़ा 1537 में बेंगलुरु की स्थापना की थी। वह विजयनगर साम्राज्य के शासक थे। ऐसा कहना जाता है कि 15वीं सदी में उनका केम्पेगोड़ा परिवार तमिलनाडु के कांची से कर्नाटक आ गया और विजयनगर साम्राज्य का शासन संभाला। सन् 1513 में केम्पेगौड़ा को पिता की विरासत को संभालने का अवसर मिला, जिसे वह काफी आगे तक ले गए। उन्होंने विजयनगर साम्राज्य पर लगभग 46 साल तक शासन किया था। इसी दौरान केम्पेगौड़ा ने एक सुंदर शहर का निर्माण किया।
सामाजिक कार्य
कैम्पेगौड़ा ने अपने शासन में कई सामाजिक कार्य भी किए। उन्होंने मोरासु गौड़ा के लोगों के बंदी देवारू के दौरान अविवाहित महिलाओं की अंतिम दो अंगुलियों को काटने की प्रथा पर रोक लगाई। कन्नड़ समुदाय से ताल्लुक रखने के बाद भी उन्हें कई अन्य भाषाओं का भी ज्ञान था। लेकिन जीवन की कठिनाइओं ने कैम्पेगौड़ा का भी साथ नहीं छोड़ा। उनके पड़ोसी द्वारा किए गए शिकायत के कारण उन्हें अपने जीवन के 5 साल जेल में ही बिताने पड़े। लेकिन बावजूद इसके उनके शासन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा।
शिकार के दौरान बेंगलुरु शहर की कल्पना की...!
ऐसा उल्लेख मिलता है कि बेंगलुरु शहर बसाने का विचार केम्पेगोड़ा को शिकार के दौरान आया था। केम्पेगौड़ा अपने मंत्री वीरन्ना और सलाहकार गिद्दे गौड़ा के साथ शिकार पर गए थे, इस दौरान उन्होंने एक ऐसा शहर बनाने के बारे में सोचा, जहां किले, छावनी, मंदिर और कारोबार करने के लिए बड़ा बाजार हो। इस कल्पना को मूर्त रूप देने के लिए केम्पेगौड़ा ने पहले शिवगंगा रियासत पर जीत हासिल की और बाद में डोम्लूर को भी जीत लिया। बता दें कि डोम्लूर पुराने बेंगलुरु एयरपोर्ट की सड़क पर स्थित है। केम्पेगौड़ा ने सन 1537 में बेंगलुरु किले का निर्माण किया और एक ऐसा शहर बसाया जो आज भी हमारे सामने है।
केंपेगोड़ा की प्रतिमा में क्या है खास?
एयरपोर्ट परिसर में लगी केंपेगोड़ा की 108 फीट ऊंची प्रतिमा आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। प्रसिद्ध मूर्तिकार राम वनजी सुतार ने डिजाइन किया है। बता दें कि सुतार ने ही गुजरात में सरदार पटेल की प्रतिमा को डिजाइन किया था। केम्पेगोड़ा की प्रतिमा का वजन 218 टन है। प्रतिमा में 98 टन कांस्य और 120 टन स्टील का प्रयोग किया गया है। प्रतिमा की तलवार का वजन ही 4 टन है। कहा जा रहा है कि किसी शहर के संस्थापक की ये सबसे ऊंची प्रतिमा है।