स्वतंत्रता सेनानियों के योगदान को अमिट बनाने शासन के पास कोई योजना नहीं
सेनानियों के गांव विकास के मोहताज, किसी को सुध नहीं, ऐसे में हम इनकी यादों को कैसे बनाएं चिरस्थायी
बेमेतरा. आजादी की लड़ाई में जेल जाने वाले स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के योगदान को चिर स्थायी रखने के लिए सेनानियों के गांवों को संवारने शासन के पास विशेष योजना नहीं है। आए दिन शासन द्वारा नई-नई योजनाएं शुरू की जा रही है पर स्वतंत्रता सेनानियों के योगदान को अमिट बनाए रखने के लिए शासन के पास कोई योजना नहीं है और न ही इस दिशा में कोई पहल की जा रही है। जिसके कारण अचंल के जिन गांवों ने देश को आजादी दिलाने के लिए आवाज उठाई थी, उन गांवों को सड़क, नाली, पानी सहित अन्य विकास के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। जिले के सेनानियों के गिने चुने गांवों को मॉडल के तौर पर तैयार कर प्रेरणादायी कदम उठाया जा सकता है। वषों से इस पर विचार तक नहीं किया गया है। जिले में उपलब्ध रिकॉर्ड के अनुसार 42 स्वतंत्रता संग्राम सेनानी हैं, जिन्होंने आजादी के लिए गांवों से बाहर निकल कर रायपुर के कारागार मे जेल की हवा खाई। डंडे खाए, सत्याग्रह पर बैठे और देश को आजादी दिलाकर माने।
गांवों की आवाज गूंजती थी कारागार में
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी अवध राम कुर्मी के पुत्र कोमल वर्मा ने बताया कि उनके पिता सन 42 में केन्द्रीय जेल में करीब 6 माह तक रहे। इस दौरान बेमेतरा, बैजलपुर, अंधियारखोर, बिलाई, जिया, कुसमी, धुुुरसेना, केशडबरी, देवकर, पिकरी, नगपुरा, हथमुड़ी, बचेड़ी, सिलधट समेत अनेक गांवों के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भी थे। तब गांवों से निकले जवानों की आवाज कारागार में गूंजती थी। ग्राम जीया के स्वतंत्रता सेनानी बिसाहू प्रसाद तिवारी के पुत्र भुनेश्वर तिवारी ने बताया कि उनके पिता ने डॉ. राम मनोहर लोहिया की प्रेरणा से सत्याग्रह किया था। देश के सबसे बड़े सत्याग्रह में शामिल होने का फक्र उनके पिता को ताउम्र रहा।
पांच पीढ़ी तक आरक्षण देने की मांग
अखिल भारतीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी उत्तराधिकारी संगठन के जिला ईकाई ने चिकित्सा सेवा, बस पास, भवन, चौक-चौराहों व मार्गों का नामकरण, पांच पीढ़ी तक शासकीय सेवा में आरक्षण, प्रतिमा लगाने, कृषि भूमि उपलब्ध कराने, जलकर, संपत्तिकर, समेकित कर में छूट व विशेष परिचय पत्र जारी करने सहित 15 सूत्रीय मांग जिला प्रशासन के समक्ष रखी थी। जिसका आज तक निराकरण नहीं किया गया है। जिस पर संगठन के अध्यक्ष मोहित राम वर्मा व अन्य सदस्यों ने चिंता जताई है।
गांवों के विकास में शासन रुचि दिखाए, तब बने बात
जिन गांवों से आजादी की आवाज उठाने वाले के गांव आज के दौर में विकास में पिछड़ चुके हैं। पत्रिका ने सेनानियों के गांवों की स्थिति का आकलन किया है। गांवों में आज भी निकासी, पानी, बिजली व सड़क का अभाव है। सेनानियों के गांवों को एक मॉडल और देश प्रेम के प्रतीक के तौर पर सामने लाने की जरूरत है। पर आज तक शासन ने सेनानियों के गांवों को संवारने की सुध तक नहीं ली।
पेंशन के लिए आज भी घूम रहे कई परिवार
सेनानियों के रहते उन्हें पेंशन मिलता रहा पर दिवंगत होने के बाद सेनानियों के परिवार को पेंशन के लिए भटकना पड़ रहा है। परिजन रमेश सौनिक ने बताया कि वे कई साल से पेंशन के लिए मांग करते आ रहे हैं। कलक्टर को आवेदन दे चुके हैं पर अभी तक पेंशन तक तय नहीं किया जा सका है तो फिर दीगर सुविधाएं कहां से मिलेगी। इसी तरह अन्य सेनानियों के वारिसों को पेंशन के लिए भटकना पड़ रहा है।
सांसद, मंत्री व विधायक प्रस्ताव भेजे तो हो सकते हैं काम
जिला पंचायत सीईओ एस आलोक ने कहा कि ग्राम गौरव योजना के नाम से स्वतंत्रता सेनानियों, राज्य निर्माण के लिए कार्य करने वालों व विशिष्ट लोगों के गांवों का संपूर्ण विकास कार्य किया जाता था। जिसके लिए राज्य स्तर से राशि स्वीकृत होती थी। फिलहाल योजना बंद है। ऐसे गांवों के लिए सांसद, मंत्री व विधायक द्वारा कार्ययोजना का प्रस्ताव हो तो शासन स्तर से स्वीकृति कराकर कार्य किया जा सकता है।