लोकतंत्र की नींव में दर्ज नाम: विठ्ठल भाई पटेल, भारत के पहले स्पीकर

22 अगस्त,1925 तक दिल्ली बहुत छोटा-सा शहर था, पर लोग उत्सुक थे कि असेंबली का अध्यक्ष कौन बनेगा. असेंबली भवन में गहमागहमी थी. मुकाबला स्वराज पार्टी के नेता विट्ठलभाई पटेल और सेंट्रल लेजिस्लेटिव असेंबली के वरिष्ठ सदस्य दीवान बहादुर टी रंगाचारी के बीच था.
लोकसभा स्पीकर के कक्ष में स्वाधीनता सेनानी विट्ठलभाई पटेल का एक चित्र टंगा है, जो हर स्पीकर को उनके कर्तव्यों और इस पद की शानदार परंपराओं का स्मरण कराता है. विट्ठलभाई पटेल 22 अगस्त, 1925 को, सेंट्रल लेजिस्लेटिव असेंबली के पहले भारतीय अध्यक्ष, यानी प्रेसिडेंट चुने गये (तब स्पीकर को यही कहा जाता था). यह ऐतिहासिक घटना उस इमारत में हुई, जिसे ई मांटेग्यू थॉमस ने डिजाइन किया था. आज यह दिल्ली विधानसभा भवन कहलाता है. चौबीस अगस्त, 1925 को उन्होंने शपथ ली. पटेल का चुना जाना क्रांतिकारी कदम था.
वर्ष 1925 तक सेंट्रल लेजिस्लेटिव असेंबली का प्रेसिडेंट या तो वायसराय होता था, या उसका कोई नामित व्यक्ति. वर्ष 1919 के एक्ट (मांटेग्यू-चेम्सफोर्ड रिफॉर्म्स) ने असेंबली के लिए चुने हुए अध्यक्ष की व्यवस्था की थी, जिसका मकसद था ब्रिटिश भारत में धीरे-धीरे स्वशासन की शुरुआत करना. उस समय सेंट्रल लेजिस्लेटिव असेंबली में 145 सदस्य थे- 104 चुने हुए और 41 नामित, जिनमें ब्रिटिश अधिकारी, जमींदार और बड़े व्यापारी शामिल थे.
22 अगस्त,1925 तक दिल्ली बहुत छोटा-सा शहर था, पर लोग उत्सुक थे कि असेंबली का अध्यक्ष कौन बनेगा. असेंबली भवन में गहमागहमी थी. मुकाबला स्वराज पार्टी के नेता विट्ठलभाई पटेल और सेंट्रल लेजिस्लेटिव असेंबली के वरिष्ठ सदस्य दीवान बहादुर टी रंगाचारी के बीच था. रंगाचारी को ब्रिटिश समर्थक माना जाता था. विट्ठलभाई पटेल का नाम मोतीलाल नेहरू, खान बहादुर सरफराज हुसैन खान, टीसी गोस्वामी, डी बेलवी और अन्य ने प्रस्तावित किया. वहीं, रंगाचारी का नाम श्रीमती कामिनी कुमार चंद्रा, प्रिंस अकरम हुसैन बहादुर और खान बहादुर मोहम्मद इस्माइल ने प्रस्तावित किया. जोरदार प्रचार के बाद वोटिंग हुई, जिसमें विट्ठलभाई पटेल को 56 और रंगाचारी को 54 वोट मिले. इस तरह, पटेल सेंट्रल लेजिस्लेटिव असेंबली के पहले भारतीय अध्यक्ष चुने गये.
देश की आजादी के बाद यही भारतीय संसद कहलायी. पटेल ने चुनाव के बाद स्वराज पार्टी से नाता तोड़ लिया और पहले ही दिन बधाई के जवाब में कहा, ‘अब मेरा संबंध किसी पार्टी से नहीं है. अब मैं सब दलों के साथ हूं.’ पटेल की अध्यक्षता में सेंट्रल लेजिस्लेटिव असेंबली मौजूदा दिल्ली विधानसभा भवन से चलती थी. जब 18 जनवरी, 1927 को नयी काउंसिल हाउस (बाद में संसद भवन) में असेंबली का पहला सत्र हुआ, तब भी विट्ठलभाई पटेल ही अध्यक्ष थे.
भगत सिंह और बीके दत्त ने आठ अप्रैल, 1928 को जब सदन में गैर घातक बम फेंके और ब्रिटिश सरकार के खिलाफ नारे लगाये, तब विट्ठलभाई पटेल सदन में मौजूद थे. एक और किस्सा. उनतीस अगस्त, 1928 को वायसराय लॉर्ड इरविन असेंबली को संबोधित करने आये. तब परंपरा थी कि जब वायसराय असेंबली में आते थे, तब अध्यक्ष अपनी कुर्सी छोड़ देते थे और वायसराय उस पर बैठते थे, जो ब्रिटिश शासन की सर्वोच्चता का प्रतीक था. पर उस दिन पटेल ने इस परंपरा को तोड़ा और असेंबली की स्वायत्तता पर जोर दिया. पटेल के इस कदम से संवैधानिक संकट पैदा हो गया. आखिरकार, वायसराय के लिए एक अलग कुर्सी लायी गयी और उसे स्पीकर की कुर्सी के दायीं ओर रखी गयी. विट्ठलभाई पटेल ने इस पद पर रहते हुए निष्पक्षता, साहस, और राष्ट्रवादी भावना का परिचय दिया.
पटेल ने भारतीय नेताओं को ब्रिटिश नीतियों की आलोचना करने और स्वशासन की मांग को जोरदार तरीके से उठाने का अवसर प्रदान किया. उन्होंने सुनिश्चित किया कि भारतीय नेताओं की आवाज को दबाया न जाये. उनके कार्यकाल में असेंबली ने कई बार ब्रिटिश सरकार की नीतियों के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया, जो स्वतंत्रता संग्राम को गति देने में सहायक सिद्ध हुआ. अपने कार्यकाल (1925 से 1930) के दौरान उन्होंने सदस्यों को सेंट्रल लेजिस्लेटिव असेंबली में जेलों में बंद राजनीतिक कैदियों की रिहाई और दमनकारी कानूनों को रद्द करने की मांग करने का मौका दिया.
सोलह फरवरी, 1928 को साइमन कमीशन की सेंट्रल लेजिस्लेटिव असेंबली में औपचारिक तौर पर निंदा की गयी. साइमन कमीशन का विरोध करने में विठ्ठलभाई पटेल ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी. इससे पूरे भारत में विरोध प्रदर्शन और ‘साइमन गो बैक’ का नारा गूंजा. स्पीकर बनने के बाद उन्हें राजधानी का 20 अकबर रोड आवास मिला. तब से भारतीय संसद के स्पीकर का यही आधिकारिक आवास है. पूर्व लोकसभा स्पीकर जीएस ढिल्लन लिखते हैं, ‘भारत में कोई भी स्पीकर विट्ठलभाई पटेल के गहरे प्रभाव से बच नहीं सकता.’ वर्ष 1930 में सेंट्रल लेजिस्लेटिव असेंबली से रिटायर होने के बाद वे मुंबई चले गये, जहां 22 अक्तूबर, 1933 को उनका निधन हो गया.